“भारतीय चिकित्सा प्रणाली: जीवन की बीमारियों का सरल इलाज”

भूमिका ( भाग- 2)

man doing a sample test in the laboratory
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भारतीय चिकित्सा

भारत में सरकार के भरोसे किसी को भी चिकित्सा नहीं मिल सकती है। यदि सभी लोग अपनी चिकित्सा स्वंय करने लगें तभी सभी को स्वस्थ मिलना संभव है। जिस प्रकार डॉक्टर बढ़े हैं, अस्पताल बढ़े हैं, दवाइयां बढ़ी हैं, सुविधाएं बढ़ी हैं, इस प्रकार बीमारियां भी बढ़ी है और आज की स्थिति यह है कि ना तो डॉक्टर पर्याप्त हैं और ना तो अस्पताल ही पर्याप्त है।

आज की स्थिति में सिर्फ 33 % लोग ही अपना इलाज करवा सकते हैं। 67 % के पास इलाज करवाने के साधन ही नहीं है और ये 33% लोग भी इलाज से संतुष्ट नहीं हैं। चिकित्सा, शिक्षा और न्याय हर व्यक्ति को उपलब्ध होना चाहिए, बिना किसी शुल्क के।

डॉक्टर नहीं कमीशन एजेंट

पैसे से किसी भी वस्तु में गुणवत्ता नहीं लाई जा सकती है। यही कारण है कि आज डॉक्टर, डॉक्टर नहीं कमीशन एजेंट बन गए हैं। यही हालत शिक्षा और न्याय व्यवस्था की भी है। परंपरागत कुछ अच्छी चीजों को हमें वापस स्थापित करना पड़ेगा, तभी आज की स्थितियों में कुछ अच्छा कर पाएंगे। आज के समय में चिकित्सा ज्यादातर कमीशन आधारित हो गई है। दवाओं की कंपनियों के साथ सांठ घांट करके यह पूरे देश में चल रहा है, कहीं ज्यादा कहीं काम।

अंग्रेजी चिकित्सा

डॉक्टर क्या कहता है? आप से कुछ बातें पूछेगा जैसे आपको भूख लगती है कि नहीं, प्यास लगती है कि नहीं, नींद आती है कि नहीं, खाना अच्छा लग रहा है कि नहीं, डॉक्टर जो कुछ बताते हैं आप के कहने पर बताते हैं। अंग्रेजी चिकित्सा का तो सिद्धांत ही है की कोशिश करो और गलतियां करों। लगे तो ठीक नहीं तो तुक्का। 250 वर्षों में अंग्रेजी चिकित्सा ने एक ही काम किया है, दर्द से लड़ने का।

मरिज सबसे अच्छा डॉक्टर है।

जो व्यक्ति मरिज होता है, वो सबसे अच्छा डॉक्टर हो सकता है। ये बात चरक जी, निघन्टू जी, सुश्रुत जी, वाग्भट्ट जी और परामर्श जी ने कही है। क्योंकि रोगी को अपने दुख और तकलीफ का जितना गहराई से अनुभव होता है वह किसी भी डॉक्टर को नहीं हो सकता है।

स्वंय चिकित्सक

जीवन की 85% बीमारियों का इलाज इतना सरल है कि थोड़ा सा चिकित्सा का ज्ञान उसके लिए काफी है। बाकी 15% बीमारियों के लिए विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है। 15% के हिस्सों में बहुत कम बीमारियां है। बाकी 15% हिस्से के लिए मुख्य ज्ञान की आवश्यकता होती है वह है थोड़ा अपने शरीर के बारे में जान लीजिए और अपने भोजन को पहचान लीजिए। मतलब थोड़ा फिजियोलॉजी तथा एनाटॉमी। आप 100% डॉक्टर हो सकते हैं।

जो व्यक्ति अपने शरीर का सुक्ष्म अवलोकन कर सके, वह सभी व्यक्ति विशेषज्ञ हो सकते हैं। पूरे ब्रह्मांड में ऐसी कोई चीजें हैं जो एक साथ वात-पित्त और कफ तीनों को ठीक रखती हैं।

पैसे से किसी भी वस्तु में गुणवत्ता नहीं लाई जा सकती है। यही कारण है कि आज डॉक्टर, डॉक्टर नहीं कमीशन एजेंट बन गए हैं। यही हालत शिक्षा और न्याय व्यवस्था की भी है। परंपरागत कुछ अच्छी चीजों को हमें वापस स्थापित करना पड़ेगा, तभी आज की स्थितियों में कुछ अच्छा कर पाएंगे। आज के समय में चिकित्सा ज्यादातर कमीशन आधारित हो गई है। दवाओं की कंपनियों के साथ सांठ घांट करके यह पूरे देश में चल रहा है, कहीं ज्यादा कहीं काम।

जीवन की 85% बीमारियों का इलाज इतना सरल है कि थोड़ा सा चिकित्सा का ज्ञान उसके लिए काफी है। बाकी 15% बीमारियों के लिए विशेषज्ञ की आवश्यकता होती है। 15% के हिस्सों में बहुत कम बीमारियां है। बाकी 15% हिस्से के लिए मुख्य ज्ञान की आवश्यकता होती है वह है थोड़ा अपने शरीर के बारे में जान लीजिए और अपने भोजन को पहचान लीजिए। मतलब थोड़ा फिजियोलॉजी तथा एनाटॉमी। आप 100% डॉक्टर हो सकते हैं।

जो व्यक्ति अपने शरीर का सुक्ष्म अवलोकन कर सके, वह सभी व्यक्ति विशेषज्ञ हो सकते हैं। पूरे ब्रह्मांड में ऐसी कोई चीजें हैं जो एक साथ वात-पित्त और कफ तीनों को ठीक रखती हैं।

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