“शारीरिक वेगों को नहीं रोकना चाहिए: आयुर्वेदिक और धार्मिक सलाह”

शारीरिक वेगों को नहीं रोकना चाहिए

1. शरीर के वेगों को कभी नहीं रोकना चाहिए जैसे नींद एक वेग है, इसे रोकना नहीं चाहिए क्योंकि वेगों को रोकने से भी बीमारियां उत्पन्न होती हैं।

2. हंंसी सहज रुप से आ रही है तो कभी मत रोकें। हंसी शरीर में बनने वाले कुछ अलग-अलग रसों (अलग-अलग ग्रंथियों से उत्पन्न होती है) के कारण पैदा होती है। मस्तिष्क में एक पिनियल ग्लैंड है जो बहुत मदद करता है हंसी आने के लिए, पिनियल ग्लैंड में कुछ रस बनते हैं जिनसे हंसी का सीधा संबंध होता है पहले ये रस पैदा होगा बाद में हंसी आएगी। ये रस भावना (शरीर की) के कारण सेकंड्स में उत्पन्न होता है। जबरदस्ती कभी नहीं हंसना चाहिए। क्योंकि बिना-भाव के और बिना रस की हंसी से शरीर को कोई लाभ नहीं होता है। ये पूरी तरह से यांत्रिक हंसी होती है। बिना रस और बिना भाव की हंसी में कभी भी पेट की नस पे नस चढ़ सकती है जिससे पेट दर्द या अन्य कई तकलीफें आ सकती है। ऐसी स्थिति में पेट का ऑपरेशन भी करना पड़ सकता है।

3. शारीरिक वेगों को नहीं रोकना चाहिए, दूसरा एक वेग है, ना तो जबरदस्ती छींकने की कोशिश करें और न ही आती हुई छींक को रोकने की कोशिश करें। जबरदस्ती छीकने से 14 से 15 रोग शरीर में आ सकते हैं और आती हुई छींक को रोकने पर 23 से 24 रोग हो सकते हैं।

आयुर्वेदिक और धार्मिक सलाह

4. प्याज तीसरा वेग हैं जिसे कभी नहीं रुकना चाहिए। पानी कितनी भी प्यास में सिप-सिप करके पीना चाहिए। बिना प्याज के पानी सुबह-सुबह ही पी सकते हैं अन्यथा नहीं। सुबह मतलब ब्रह्म मुहूर्त यानी सूर्योदय से डेढ़ घंटे पहले का समय। प्यास रोकने से कुल 58 रोग शरीर में आते हैं। कुर्सी पर बैठकर पानी पीना भी सही नियम नहीं है।

5. भूख के वेग रोकने से 103 रोग शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। जिसमें पहला रोग एसिडिटी का है और आखरी रोग आंत का कैंसर है।

6. जम्हाई आने का वेग कभी ना रोकें शरीर के रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने के कारण जम्हाई आती है। क्योंकि इसी के माध्यम से रक्त में ऑक्सीजन की इस कमी की पूर्ति करने के लिए अतिरिक्त ऑक्सीजन की व्यवस्था होती है। इसीलिए जम्हाई को कभी न रोके। जहां अपनों से उच्च लोग बैठे हों उस अवस्था में थोड़ी दूर जाकर या मुंह घुमाकर जम्हाई लें ।प्रकृति का नियम है जितनी ऑक्सीजन लेंगे उसी समय में उतनी ही कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकलेगी।

7. शारीरिक वेगों को नहीं रोकना चाहिए मूत्र वेग कभी रोकने की कोशिश न करें। इसको रोकने से रक्त के सारे विकार शरीर धारण कर लेगा यह वेग रोकने से शरीर के हर हिस्से में दबाव बढ़ जाता है। रक्त पर दबाए पड़ेगा तो सभी ग्रंथियों पर दबाव पड़ेगा। मूत्र का एक-एक कम आना किसी बीमारी के कारण होता है। मूत्र खुलकर आना और बार बार आना बीमारी नहीं है। ऐसी स्थिति में किसी विशेषज्ञ की मदद लें।

8. मल का वेग कभी न रोकें। दिन में दो बार, समय कोई भी हो समान्य स्थिति है और 2 बार से अधिक जाने की अवस्था में कोई समस्या या बीमारी हो सकती है यानी रोज तीन तीन बार जाना थोड़ी असामान्य स्थिति है। लेकिन 3 बार से अधिक जाना मतलब निश्चित रूप से कोई समस्या या बीमारी की स्थिति है। इसके लिए किसी विशेषज्ञ की मदद ले

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9. वीर्य का वेग साधु,संत, महंत, अथवा ब्रह्मचार्य का पालन करने वाले लोगों को ही रोकना चाहिए और अवश्य रोकना चाहिए। इसमें सभी कुंवारे लोग भी शामिल हैं। गृहस्थ जीवन जीने वाले लोगों को वीर्य का वेग कभी नहीं रोकना चाहिए। अर्थात काम वेग गृहस्थ लोगों को कभी नहीं रोकना चाहिए। ऐसा करना बहुत ही खराब माना गया है। ऐसा सिर्फ पति-पत्नी के परिपेक्ष्य में कहा गया है। कुंवारे लोगों के लिए इसका पहला नियम लागू होता है।

10. वीर्य का वेग गृहस्थ लोगों के लिए भी कृत्रिम नहीं होना चाहिए अर्थात जबरदस्ती वीर्य के वेग को पैदा भी नहीं करना चाहिए। गृहस्थ नियमों के साथ ही इस नियम का पालन करना चाहिए। साधु, संत, महात्मा, ब्रह्मचारी इस तरह के लोग असामान्य श्रेणी के मनुष्य हैं। अर्थात ग्रस्त लोग साधारण श्रेणी के लोग हैं।

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