“बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सही नींद और आहार: टिप्स और सुझाव”

बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सही नींद और आहार

—-बच्चों के स्वास्थ्य के लिए सही नींद और आहार दिनचर्या हर व्यक्ति के अपने शरीर के हिसाब से अलग-अलग होती है। यह सभी के लिए एक समान नहीं हो सकती है। दिनचर्या की दृष्टि से हर व्यक्ति के जीवन को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है-बचपन (यानी पहले दिन से 14 साल तक का समय), जवानी (14 साल से 60 साल तक), बुढापा ( 60 वर्ष के बाद का समय)।

baby wearing knit cap
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बचपन की दिनचर्या

(कफ के प्रभाव वालों की दिनचर्या पहले दिन से 14 वर्ष तक)

1.—-बचपन (पहले दिन से 14 वर्ष तक) में कफ का प्रभाव अधिक होता है। उस समय वात और पित्त,कफ की तुलना में बहुत कम होता है। 14 वर्ष तक, 8 से 10 घंटे सोना भी अनुकूल ही माना गया है। 14 वर्ष तक, वात या पित्त की समस्या होना यानी वात और पित्त बिगड़ने की स्थिति में ही संभव है। बात के असर में नींद बहुत कम आती है।

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बच्चों (14 वर्ष तक) को नींद 8 से 10 घंटे की लेनी चाहिए।

2.—- बच्चों (14 वर्ष तक) को नींद 8 से 10 घंटे की लेनी चाहिए। यही नींद यदि दो हिस्सों में ले तो बहुत अच्छा होगा। यानी रात में 8 घंटे तक सो जाए और दिन में 2 घंटे तक सो जाएं।

3.—- पहले दिन से 4 वर्ष तक के बच्चों को कम से कम 16 घंटे की नींद लेनी चाहिए। 4 वर्ष से 8 वर्ष तक के बच्चों को 12 से 14 घंटे तक की नींद लेनी चाहिए। 8 से 14 वर्ष तक के बच्चों को 8 से 10 घंटे की नींद लेनी चाहिए।

4.—- कफ चिकना और भारी होता है। भारी वस्तुएं शरीर का रक्त दबाव बढ़ाती हैं।ऐसा भारी वस्तुओं के अधिक गुरुत्व के कारण होता है। भारी वस्तुओं में गुरुत्व अधिक होता है। इसलिए वक्त की स्थिति में अधिक सोना चाहिए क्योंकि नींद लेते समय शरीर का रक्त दबाव हमेशा कम होता है। सोते समय रक्त दबाव या तो सामान होता है या तो सामान से कम होता है और जगने की अवस्था में रक्त दबाव सामान्य या सामान से थोड़ा ज्यादा होता है। इसीलिए बच्चों को सूर्यास्त के 2 घंटे के अंदर सो जाना चाहिए। ऐसा बच्चों को टीवी से दूर रखकर किया जा सकता है। बिगड़ा हुआ कफ बच्चों को चिड़चिड़ा बनाता है जिससे गुस्सा अधिक आता है।

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कफ के प्रभाव वालों की दिनचर्या

5.—- कफ अधिक बिगड़ जाने से मन नियंत्रित नहीं होता है जिसके कारण ऐसा व्यक्ति कोई भी अपराध कर सकता है। कफ के असर से प्रेम बहुत पैदा होता है। अतः कफ प्रेम भी पैदा करता है और क्रोध भी पैदा करता है।कफ जब तक नियंत्रण में है तब तक प्रेम सद्भाव पैदा करेगा और यही नियंत्रण के बाहर हो जाता है तो व्यक्ति के स्वभाव को खतरनाक बना देता है।

6.— अमेरिका की कुल आबादी 27 करोड़ है, और इसमें से 3 करोड़ बच्चे हैं। इन 3 करोड़ बच्चों में 30 लाख बच्चे जेल में बंद है। यह बच्चे 10, 11, 12 साल या इसके आसपास के हैं। ऐसी ही स्थिति कनाडा, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन, स्वीटजरलैंड की है। इन देशों के 65 से 60% अपराध बच्चे करते हैं, अपराध चाहे जो हो। अतः यहां के बच्चों का कफ बिगड़ा हुआ होता है। इसीलिए कफ को नियंत्रित करने के लिए नींद भरपूर लीजिए और लेने दीजिए। शरीर की प्राकृति और व्यवस्था के हिसाब से कफ के असर में पढ़ाई नहीं हो सकती है, पढ़ाई के असर में अधिक होती है अर्थात पित्त बढ़ना चाहिए और कफ कम होना चाहिए।

7.— सोकर उठने के बाद कफ शांत होता है। अतः इस समय कफ प्रभावित लोगों की पढ़ाई बहुत अच्छी हो सकती है। दिन के हिसाब से सुबह का समय कब का समय होता है अतः नींद अधिक आएगी ऐसा प्राकृति का नियम है।

8.— आज के समय की स्कूली शिक्षा का 90% हिस्सा किसी के कोई काम नहीं आता है। बच्चों के स्कूल का समय दोपहर को ही होना चाहिए।

9.— हृदय से ऊपर मस्तिष्क तक कफ का क्षेत्र है। हृदय से नीचे नाभि तक पित्त का क्षेत्र है। नाभि से नीचे पूरा वात का क्षेत्र है। बच्चों के ज्यादातर रोग छाती के ऊपर वाले (कफ) ही होंगे, जैसे नाक बहेगी, जुकाम होगा, खांसी होगी यह सब कफ के रोग है। कह के प्रभाव को संतुलित करने के लिए नींद के बाद दूसरी चीज है बच्चों की तेल मालिश। अतः बच्चों की रोज तेल मालिश होनी ही चाहिए।

बात के प्रभाव वालों को बहुत मामूली व्यायाम करना चाहिए।

10.—बच्चों को या कैफ की अधिकता वाले लोगों को या जिनका कैफ बड़ा हुआ हो उनको व्यायाम नहीं करना चाहिए। जैसे परिणाम, योग आसन आदि। व्यायाम, प्राणायाम या रोग उनके लिए बहुत अच्छा है जो पित्त के प्रभाव में हैं। बात के प्रभाव वालों को बहुत मामूली व्यायाम करना चाहिए।

11.—-तेल मालिश शरीर से कफ वाले हिस्से में अधिक करना है। वैसे तो पूरे शरीर में करना चाहिए अर्थात बच्चों की सर की मालिश अधिक करें लेकिन धीरे-धीरे तेल से करें जिससे तेल सिर में छोटे-छोटे छिद्रों के माध्यम से शरीर में प्रवेश करेगा और कफ का नाश करेगा। क्योंकि तेल कफ नाशक है। दूसरा कफ का मुख्य स्थान (सर के बाद) कान है अर्थात कान की भी मालिश रोज होनी चाहिए तेल से और थोड़ा-थोड़ा तेल कानों में जरुर डालना चाहिए जिससे की कफ शांत हो सके। तीसरे नंबर पर आंखें कफ का सबसे बड़ा केंद्र है। आंखों के ज्यादातर रोग कफ के रोग है। जैसे कैटरेक्ट,मोतियाबिंद, ग्लूकोमा, आंखों का लाल होना ये सब कफ के रोग हैं ।

12.—-देशी गाय का घी बच्चों की आंखों में डाल सकते हैं या लगा सकते हैं। तेल आंखों में नहीं डालना चाहिए। देशी गाय के घी भी उपलब्धता नहीं होने पर आंखें आंखों में काजल लगाया जा सकता है। काजल मतलब कार्बन, कार्बन कफ को शांत करने में बड़ी भूमिका निभाता है। काजल (सौव्यीर अंजन) बनाने में गाय का घी, गाय का दूध,दारू हल्दी ऐसी ही 5 से 7 वस्तुएं प्रयोग में लाई जाती है।

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कब के प्रभाव की स्थिति

13.—-कब के प्रभाव की स्थिति में खानपान में दूध सबसे आवश्यक वस्तु है। दूसरी वस्तु है मक्खन, तीसरी वस्तु है घी उसके बाद तेल, उसके बाद है मठ्ठा, उसके बाद गुड़ है। ये सब कफ को शांत करते हैं। गुड़ के साथ बच्चों को तेल, मूंगफली आदि वस्तुएं जरूर खिलाना चाहिए। ये साड़ी वस्तुएं रोज के खान-पान में होनी चाहिए। यह साड़ी वस्तुएं भारी है और भारी वस्तुएं कफ को संतुलित रखने में मदद करती है।

14.—-मैदा बच्चों को कभी नहीं खिलाना चाहिए। मैदा या मैदे की बनी कोई भी वस्तु बच्चों को नहीं खिलाना चाहिए। क्योंकि मैदे की चीजें कफ को बिगाड़ने वाली होती है।

15.—-शरीर की मालिश तेल से हमेशा स्नान करने से पहले होनी चाहिए और मालिश करते समय जब उसके बगल में (शरीर पर) पसीना आ जाए तो मालिश रोक दें।माथे पर पसीना आने पर भी मालिश रोक देनी चाहिए। नहाते समय कफ को कम करने वाली वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए। जैसे- चने का आटा, चंदन की लकड़ी का पाउडर, मसूर की दाल का आटा, कोई भी मोटा आटा, मूंग की दाल का आटा अर्थात बच्चों का स्नान उन्हीं से कराएं तथा साबुन ना लगाएं। साबुन सोडियम ऑक्साइड यानी कास्टिक सोडा से बनता है, जो कि कफ को भड़काने वाली वस्तु है। अतः साबुन कभी भी ना लगाएं। मुल्तानी मिट्टी से भी स्नान कर सकते हैं। उबटन लगाएं, साबुन और आंखों की बहुत ही गहरी दुश्मनी है। अतः इसका उपयोग बिल्कुल भी ना करें।

16.—-12 से 4:00 बजे के बीच में पित्त बढ़ता है। इस समय घी की बनी हुई वस्तुएं ज्यादा खिलाना चाहिए। शाम को वात को कम करने वाली चीज ही खिलाएं।

17.—-कफ के प्रभाव वालों की कल्पनाशीलता सबसे ऊंची होगी। बच्चों पर कहानियों का असर बहुत पड़ता है, अतः बच्चों को जैसा बनना हो उनको वैसे ही लोगों की कहानियां सुनानी चाहिए। बच्चों के पास शब्दकोश की कमी होती है लेकिन जिनका कफ संतुलित होता है उनकी कल्पनाशीलता किसी भी सामान्य व्यक्ति से अधिक होती है। जिनकी लंबी कहानियां होंगी। उतनी ही रचनात्मक बच्चे होंगे। बच्चों के सवालों के जवाब हमेशा इमानदारी से दें। गलत उत्तर देने से बच्चों में एक समय के बाद आदर भाव की कमी होने लगती है। बच्चों को पढ़ने के लिए चंदा मामा, अमर चित्र कथा, चंदन जैसी पत्रिकाएं अवश्य देनी चाहिए।

18.—-कफ प्रकृति में चंचलता होती है। अस्थिरता, चेहरा गोल मटोल होगा। विशेषता में सब कुछ नया नया लगता है, दूसरा दिमाग बहुत ही तीव्र होता है। यही कारण है कि सीखने की सबसे ज्यादा अनुकूल उम्र 14 वर्ष तक की मानी गई है। कफ प्रकृति विद्रोही स्वभाव की होती है। इसीलिए बच्चे को डांटना या मारना नहीं चाहिए। बच्चों के व्यवहारिक /क्रियात्मक ज्ञान के विकास पर अधिक ध्यान देना चाहिए।

19.—-दुनिया के सभी महान वैज्ञानिकों पर स्कूली शिक्षा का सफर अच्छा नहीं था अर्थात उनके जीवन की स्कूली पढ़ाई में ज्यादातर वैज्ञानिक फेल हो चुके थे। न्यूटन आठवीं, आइंस्टीन 9वीं फेल थे।

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