1. भारतीय संस्कृति और जीवन के मूल सिद्धांत मनुष्य शरीर ही मोक्ष धारण करता है। जो मनुष्य अपने दुःखों को दूर कर ले और दूसरे के दुःखों को दूर करने का काम करें, वही मोक्ष का अधिकारी है। इसमें सफलता मिले ना मिले यह महत्वपूर्ण नहीं है। ईमानदारी से प्रयास करें, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है।
तीन तरह के दुःख
2. तीन तरह के दुःख पूरी दुनिया में बताए गए हैं। (1)दैहिक दुःख (शरीर का दुःख), (2)दैविक दुःख (भगवान का दिया हुआ दुःख), (3) भौतिक दुःख (गरीबी का दुःख)। जो व्यक्ति उन तीनों दुःखों से मुक्त है और दूसरों को भी मुक्त करवाने के प्रयास में रत है, वही व्यक्ति मोक्ष का अधिकारी है।
3. शरीर के दुःख को दूर करने की सबसे बड़ी भूमिका पेट की होती है। 90% दैहिक दुःख पेट से संबंधित है। 10% दुःख ही पेट के अतिरिक्त होते हैं।इसीलिए सबसे ज्यादा ध्यान पेट का रखना चाहिए। ये 90% बीमारियों की संख्या 148 हैं।
4. हमारे समाज में को-ऑपरेशन था,कांम्पटीशन नहीं था। भारत के लोगों का DNA धार्मिक चीजों से ज्यादा प्रेरित रहता है। गर्म देशों का DNA और ठंडे देशों का DNA बिल्कुल अलग होता है। दुनिया के सभी धर्म पूर्व से निकले हैं अर्थात एशिया से निकले हैं और एशिया के देश पश्चिम देशों की तुलना में गर्म है। भारत की भूमि मध्य मार्गियों की भूमि है न ज्यादा भोगी बनोना न ज्यादा त्यागी बनो ऐसा गीता में श्रीकृष्ण भगवान ने कहा है।
5. जन्म होने में पीड़ा होती है मृत्यु तो पीड़ारहित है, ऐसा शास्त्रों में लिखा गया है। भारतीय शास्त्रों में मृत्यु को उत्सव कहा गया है। इसलिए कभी भी व्यक्ति को बीमारियों की पीड़ा सहकर मरना ना पड़े, कुछ ऐसी व्यवस्था करनी होगी।
6. भारतीय संस्कृति और जीवन के मूल सिद्धांत भारत के शास्त्रों के अनुसार भारत में या इसकी सभ्यता संस्कृति में सभी लोगों का कर्म, मोक्ष की प्राप्ति के उद्देश्य से होता है अर्थात् सभी पर्व, उत्सव, क्रियाकलाप आदि मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से किए जाते हैं।
बड़ा धर्म
7. प्यासे को पानी पिलाना और भूखे को रोटी खिलाना बहुत बड़ा धर्म का काम है।
8. भारतीय संस्कृति और जीवन के मूल सिद्धांत ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक चीजों का प्रयोग करें। भारत के सभी लोग समृद्धशाली हों। एक व्यक्ति ठीक होने के बाद दूसरे को ठीक करें। बेकार की वस्तुएं घर में न लायें ।250 साल अंग्रेजों द्वारा लूटे जाने के बाद भारत का हर आदमी गरीब हो गया है। अपने आसपास बनने वाली वस्तुओं का ही प्रयोग करें।
9. जिनकी आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं होती है उनकी राजनैतिक स्थिति भी कमजोर होती है और जिनकी राजनीतिक स्थिति मजबूत नहीं होती उनका धर्म ही सुरक्षित नहीं होता है। संस्कृत और सभ्यता भी सुरक्षित नहीं रह सकती है।
जीवन के मूल सिद्धांत
10. भारतीय संस्कृति और जीवन के मूल सिद्धांत अपने खून पसीने की कमाई को विचार करो खर्चा करें क्योंकि आप गरीब होंगे तो देश भी गरीब होगा। भेड़ चाल नहीं होनी चाहिए। खर्चों पर नियंत्रण नहीं होने की वजह से आज अमेरिका जैसा देश चीन का कर्जदार है। अतः खर्चा कम करें, बचत ज्यादा करें। क्योंकि आपके द्वारा बचाया हुआ पैसा देश को परोक्ष रूप से काम आएगा अर्थात उतना पैसा वह बाहर से कर्ज नहीं लेगा, आपसे लेकर काम चलाएगा।
1. भारतीय संस्कृति और जीवन के मूल सिद्धांत मनुष्य शरीर ही मोक्ष धारण करता है। जो मनुष्य अपने दुःखों को दूर कर ले और दूसरे के दुःखों को दूर करने का काम करें, वही मोक्ष का अधिकारी है। इसमें सफलता मिले ना मिले यह महत्वपूर्ण नहीं है। ईमानदारी से प्रयास करें, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है।
तीन तरह के दुःख
2. तीन तरह के दुःख पूरी दुनिया में बताए गए हैं। (1)दैहिक दुःख (शरीर का दुःख), (2)दैविक दुःख (भगवान का दिया हुआ दुःख), (3) भौतिक दुःख (गरीबी का दुःख)। जो व्यक्ति उन तीनों दुःखों से मुक्त है और दूसरों को भी मुक्त करवाने के प्रयास में रत है, वही व्यक्ति मोक्ष का अधिकारी है।
3. भारतीय संस्कृति और जीवन के मूल सिद्धांत शरीर के दुःख को दूर करने की सबसे बड़ी भूमिका पेट की होती है। 90% दैहिक दुःख पेट से संबंधित है। 10% दुःख ही पेट के अतिरिक्त होते हैं।इसीलिए सबसे ज्यादा ध्यान पेट का रखना चाहिए। ये 90% बीमारियों की संख्या 148 हैं।
4. हमारे समाज में को-ऑपरेशन था,कांम्पटीशन नहीं था। भारत के लोगों का DNA धार्मिक चीजों से ज्यादा प्रेरित रहता है। गर्म देशों का DNA और ठंडे देशों का DNA बिल्कुल अलग होता है। दुनिया के सभी धर्म पूर्व से निकले हैं अर्थात एशिया से निकले हैं और एशिया के देश पश्चिम देशों की तुलना में गर्म है। भारत की भूमि मध्य मार्गियों की भूमि है न ज्यादा भोगी बनोना न ज्यादा त्यागी बनो ऐसा गीता में श्रीकृष्ण भगवान ने कहा है।
5. जन्म होने में पीड़ा होती है मृत्यु तो पीड़ारहित है, ऐसा शास्त्रों में लिखा गया है। भारतीय शास्त्रों में मृत्यु को उत्सव कहा गया है। इसलिए कभी भी व्यक्ति को बीमारियों की पीड़ा सहकर मरना ना पड़े, कुछ ऐसी व्यवस्था करनी होगी।
6. भारतीय संस्कृति और जीवन के मूल सिद्धांत भारत के शास्त्रों के अनुसार भारत में या इसकी सभ्यता संस्कृति में सभी लोगों का कर्म, मोक्ष की प्राप्ति के उद्देश्य से होता है अर्थात् सभी पर्व, उत्सव, क्रियाकलाप आदि मोक्ष प्राप्ति के उद्देश्य से किए जाते हैं।
बड़ा धर्म
7. भारतीय संस्कृति और जीवन के मूल सिद्धांत, प्यासे को पानी पिलाना और भूखे को रोटी खिलाना बहुत बड़ा धर्म का काम है।
8. भारतीय संस्कृति और जीवन के मूल सिद्धांत ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक चीजों का प्रयोग करें। भारत के सभी लोग समृद्धशाली हों। एक व्यक्ति ठीक होने के बाद दूसरे को ठीक करें। बेकार की वस्तुएं घर में न लायें ।250 साल अंग्रेजों द्वारा लूटे जाने के बाद भारत का हर आदमी गरीब हो गया है। अपने आसपास बनने वाली वस्तुओं का ही प्रयोग करें।
9. जिनकी आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं होती है उनकी राजनैतिक स्थिति भी कमजोर होती है और जिनकी राजनीतिक स्थिति मजबूत नहीं होती उनका धर्म ही सुरक्षित नहीं होता है। संस्कृत और सभ्यता भी सुरक्षित नहीं रह सकती है।
जीवन के मूल सिद्धांत
10. भारतीय संस्कृति और जीवन के मूल सिद्धांत अपने खून पसीने की कमाई को विचार करो खर्चा करें क्योंकि आप गरीब होंगे तो देश भी गरीब होगा। भेड़ चाल नहीं होनी चाहिए। खर्चों पर नियंत्रण नहीं होने की वजह से आज अमेरिका जैसा देश चीन का कर्जदार है। अतः खर्चा कम करें, बचत ज्यादा करें। क्योंकि आपके द्वारा बचाया हुआ पैसा देश को परोक्ष रूप से काम आएगा अर्थात उतना पैसा वह बाहर से कर्ज नहीं लेगा, आपसे लेकर काम चलाएगा।
ग्लास भारत का नहीं है, ग्लास यूरोप से आया है, और यूरोप में पुर्तगाल से आया है। भारत का लोटा है। लोटा जो गोलाकार में होता है। लोटा कभी भी एक रेखिय नहीं होता हैं। एक रेखिय बर्तन अच्छे नहीं होते हैं। लोटे में पानी रखने से मात्र पात्र का गुण पानी में आ जाता है। हर गोल चीज का सर्फेसटेन्सन कम है क्योंकि गोल वस्तुओं का सर्फेस एरिया कम है। अतः पानी का भी सर्फेसटेन्सन गोल वस्तु यानी लौटे जैसी आकार की वस्तु में कम होगा।
सर्फेसटेंशन अधिक की कोई भी खाने या पीने की वस्तु स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत खराब होती है क्योंकि इसमें शरीर को दबाव देने वाला अतिरिक्त दबाव इसके माध्यम से आता है।
पानी का सबसे बड़ा गुण है सफाई करना। अधिक सर्फेसटेंसन का पानी बड़ी आंत और छोटी आंत की सफाई अच्छी तरह नहीं कर पता है।
कम सर्फेसटेंसन की वस्तु शरीर पर लगाए लगाने से वह त्वचा के मुंह को थोड़ा अधिक (दूसरी स्थिति में) खोल देती है, जिसके कारण शरीर के बाहर आसानी से निकल जाता है। इसी प्रकार कम सर्फेसटेन्सन का पानी बड़ी आंत और छोटी आंख के सर्फेसटेंशन को कम कर देता है जिससे बड़ी आंत और छोटी आंत का मुंह थोड़ा अधिक खुल जाता है,शो जिसके कारण ज्यादा से ज्यादा कचरा उनसे बाहर यानी शरीर के बाहर निकल जाता है। इसी के विपरीत ज्यादा सर्फेसटेंशन का पानी पीने से आंतो का सर्फेसटेंशन बढ़ेगा जिसके कारण आंतें सिकुडेगीं और आंतों में से कचरे की सफाई ठीक प्रकार से नहीं हो पाएगी। तनाव बढ़ने से कोई भी चीज से बढ़ती है और तनाव घटने से कोई भी चीज खुलती है। इसी कचरे के कारण शरीर में मूल़व्याध ,भगंदर जैसे रोगों की स्थिति ज्यादा बढ़ती है।
पानी के सर्फेसटेंशन और स्वस्थ
पानी के सर्फेसटेंशन और स्वस्थइसीलिए हमेशा गोल वस्तुओं में रखा पानी पीना चाहिए। क्योंकि सभी गोल चीजों में रखा हुआ पानी सर्वोत्तम होता है ।चाहे वह लौटा, कुंआ , तलाब ,पोखरा का ही पानी क्यों ना हो। ज्यादा खराब पानी समुंदर का है।
बारिश का पानी गोल होकर ही नीचे आता है इसका सर्फेसटेंशन कम होता है। हर ठंडे पानी का सर्फेसटेन्सन बढ़ा हुआ होता है। और हर गुनगुने पानी का सर्विस स्टेशन कम होता है।
बीमार लोगों को पानी हमेशा गर्म ही पीना चाहिए। किसी भी बर्तन में रखने से पहले पानी को गर्म करके उसे ठंडा करना चाहिए।
गोल वस्तुओं में रखा पानी की महत्व
ग्लास भारत का नहीं है, ग्लास यूरोप से आया है, और यूरोप में पुर्तगाल से आया है। भारत का लोटा है। लोटा जो गोलाकार में होता है। लोटा कभी भी एक रेखिय नहीं होता हैं। एक रेखिय बर्तन अच्छे नहीं होते हैं। लोटे में पानी रखने से मात्र पात्र का गुण पानी में आ जाता है। हर गोल चीज का सर्फेसटेन्सन कम है क्योंकि गोल वस्तुओं का सर्फेस एरिया कम है। अतः पानी का भी सर्फेसटेन्सन गोल वस्तु यानी लौटे जैसी आकार की वस्तु में कम होगा।
सर्फेसटेंशन अधिक की कोई भी खाने या पीने की वस्तु स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत खराब होती है क्योंकि इसमें शरीर को दबाव देने वाला अतिरिक्त दबाव इसके माध्यम से आता है।
पानी का सबसे बड़ा गुण है सफाई करना। अधिक सर्फेसटेंसन का पानी बड़ी आंत और छोटी आंत की सफाई अच्छी तरह नहीं कर पता है।
कम सर्फेसटेंसन की वस्तु शरीर पर लगाए लगाने से वह त्वचा के मुंह को थोड़ा अधिक (दूसरी स्थिति में) खोल देती है, जिसके कारण शरीर के बाहर आसानी से निकल जाता है। इसी प्रकार कम सर्फेसटेन्सन का पानी बड़ी आंत और छोटी आंख के सर्फेसटेंशन को कम कर देता है जिससे बड़ी आंत और छोटी आंत का मुंह थोड़ा अधिक खुल जाता है,शो जिसके कारण ज्यादा से ज्यादा कचरा उनसे बाहर यानी शरीर के बाहर निकल जाता है। इसी के विपरीत ज्यादा सर्फेसटेंशन का पानी पीने से आंतो का सर्फेसटेंशन बढ़ेगा जिसके कारण आंतें सिकुडेगीं और आंतों में से कचरे की सफाई ठीक प्रकार से नहीं हो पाएगी। तनाव बढ़ने से कोई भी चीज से बढ़ती है और तनाव घटने से कोई भी चीज खुलती है। इसी कचरे के कारण शरीर में मूल़व्याध ,भगंदर जैसे रोगों की स्थिति ज्यादा बढ़ती है।
पानी के सर्फेसटेंशन और स्वस्थ
पानी के सर्फेसटेंशन और स्वस्थ इसीलिए हमेशा गोल वस्तुओं में रखा पानी पीना चाहिए। क्योंकि सभी गोल चीजों में रखा हुआ पानी सर्वोत्तम होता है ।चाहे वह लौटा, कुंआ , तलाब ,पोखरा का ही पानी क्यों ना हो। ज्यादा खराब पानी समुंदर का है।
बारिश का पानी गोल होकर ही नीचे आता है इसका सर्फेसटेंशन कम होता है। हर ठंडे पानी का सर्फेसटेन्सन बढ़ा हुआ होता है। और हर गुनगुने पानी का सर्विस स्टेशन कम होता है।
बीमार लोगों को पानी हमेशा गर्म ही पीना चाहिए। किसी भी बर्तन में रखने से पहले पानी को गर्म करके उसे ठंडा करना चाहिए।
गोल वस्तुओं में रखा पानी की महत्व
ग्लास भारत का नहीं है, ग्लास यूरोप से आया है, और यूरोप में पुर्तगाल से आया है। भारत का लोटा है। लोटा जो गोलाकार में होता है। लोटा कभी भी एक रेखिय नहीं होता हैं। एक रेखिय बर्तन अच्छे नहीं होते हैं। लोटे में पानी रखने से मात्र पात्र का गुण पानी में आ जाता है। हर गोल चीज का सर्फेसटेन्सन कम है क्योंकि गोल वस्तुओं का सर्फेस एरिया कम है। अतः पानी का भी सर्फेसटेन्सन गोल वस्तु यानी लौटे जैसी आकार की वस्तु में कम होगा।
सर्फेसटेंशन अधिक की कोई भी खाने या पीने की वस्तु स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत खराब होती है क्योंकि इसमें शरीर को दबाव देने वाला अतिरिक्त दबाव इसके माध्यम से आता है।
पानी का सबसे बड़ा गुण है सफाई करना। अधिक सर्फेसटेंसन का पानी बड़ी आंत और छोटी आंत की सफाई अच्छी तरह नहीं कर पता है।
कम सर्फेसटेंसन की वस्तु शरीर पर लगाए लगाने से वह त्वचा के मुंह को थोड़ा अधिक (दूसरी स्थिति में) खोल देती है, जिसके कारण शरीर के बाहर आसानी से निकल जाता है। इसी प्रकार कम सर्फेसटेन्सन का पानी बड़ी आंत और छोटी आंख के सर्फेसटेंशन को कम कर देता है जिससे बड़ी आंत और छोटी आंत का मुंह थोड़ा अधिक खुल जाता है,शो जिसके कारण ज्यादा से ज्यादा कचरा उनसे बाहर यानी शरीर के बाहर निकल जाता है। इसी के विपरीत ज्यादा सर्फेसटेंशन का पानी पीने से आंतो का सर्फेसटेंशन बढ़ेगा जिसके कारण आंतें सिकुडेगीं और आंतों में से कचरे की सफाई ठीक प्रकार से नहीं हो पाएगी। तनाव बढ़ने से कोई भी चीज से बढ़ती है और तनाव घटने से कोई भी चीज खुलती है। इसी कचरे के कारण शरीर में मूल़व्याध ,भगंदर जैसे रोगों की स्थिति ज्यादा बढ़ती है।
पानी के सर्फेसटेंशन और स्वस्थ
पानी के सर्फेसटेंशन हमेशा गोल वस्तुओं में रखा पानी पीना चाहिए। क्योंकि सभी गोल चीजों में रखा हुआ पानी सर्वोत्तम होता है ।चाहे वह लौटा, कुंआ , तलाब ,पोखरा का ही पानी क्यों ना हो। ज्यादा खराब पानी समुंदर का है।
बारिश का पानी गोल होकर ही नीचे आता है इसका सर्फेसटेंशन कम होता है। हर ठंडे पानी का सर्फेसटेन्सन बढ़ा हुआ होता है। और हर गुनगुने पानी का सर्विस स्टेशन कम होता है।
बीमार लोगों को पानी हमेशा गर्म ही पीना चाहिए। किसी भी बर्तन में रखने से पहले पानी को गर्म करके उसे ठंडा करना चाहिए।
पीने के नियम जो आपके स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है
1. पानी पीने के सही तरीके, भोजन के अंत में या बीच में पानी पीना विष पीने के बराबर है। कम से कम 8 घंटे के बाद पानी पीना चाहिए खाया हुआ भोजन डेढ़ घंटे तक जठराग्नि के प्रभाव में रहता है। किसान और मेहनत के काम करने वाले लोगों के लिए एक घंटे बाद पानी पीना चाहिए। जानवरों के शरीर में 4 घंटे तक जठराग्नि का प्रभाव होता है। पहाड़ी क्षेत्र में अग्नि का असर 2 से ढाई घंटे तक रहेगा। भोजन से पहले पानी कम से कम 40 मिनट या अधिक से अधिक 1 घंटे पहले पी लेना चाहिए। चाहें जितना पानी पी सकते हैं।
2. सुबह उठते ही दांत-मुंह धोये बिना सबसे पहले पानी पियें।
3. यदि आपके भोजन में 2 अन्य हैं तो एक अन्य की समाप्ति और दूसरे अन्न की शुरुआत के पहले एक से दो घूंट पानी पी सकते हैं। भोजन के अंत में गला साफ करने के लिए एक से दो घूंट पानी पी सकते हैं।
4. भोजन के अंत में सबसे अच्छी चीज मट्ठा-छाछ है, पीने के लिए जिसको पीने का सही समय दोपहर के भोजन के बाद का है। दूसरी सबसे अच्छी चीज है -दूध (देशी गाय का) जिसको शाम के खाने के बाद पी सकते हैं। दूध सोते समय पियें तो और अच्छा है। तीसरी सबसे अच्छी चीज है, मौसमी फल के रस जिसका सही समय है सुबह के भोजन के बाद। कोल्ड स्टोरेज के फलों का रस सर्वनाश करेगा। हमेशा पेट में जो रस बनते हैं, उनको पचाने के लिए वो इसी कर्म( समय) में बनते हैं। जो बच्चे मां के दूध पर निर्भर है (3 साल तक) उनके ऊपर यह नियम लागू नहीं होता है क्योंकि बच्चों के अंदर रसों का निर्माण उसकी उम्र के डेढ़ 2 साल बाद ही शुरू होता है।
5. फल खाना जूस पीने से बहुत अच्छा माना गया है। क्योंकि जूस में सारे फाइबर बाहर निकल जाते हैं। फाइबर ब्लड को साफ करता है। बड़ी आत छोटी आत को साफ करता है। हृदयाघात। ट्राइग्लिसराइड। कोलेस्ट्रोल। नियंत्रित करेगा। जूस में थोड़ा काला नमक डालकर पिए या अदरक का रस यातना डालकर पिए, कभी भी सर्दी नहीं होगी सर्दी नहीं होगी। यह गिलास जूस में चौथाई चम्मच अदरक का रस, काला नमक कनक( गेहूं) के दाने के बराबर का चुनाव ही इतना ही मिला लें।
6. पानी हमेशा चुस्कियां ले लेकर पिए अर्थात पानी हमेशा घूंट घूंट करके पियें। हमारे शरीर में भोजन पचाने के लिए अग्नि होती है और अग्नि को तीव्र करने के लिए अम्ल होता है और मुंह में क्षार बनता है। लार के रूप में अम्ल और छार आपस में मिलकर न्यूट्रल हो जाते हैं। अम्ल का मतलब जिनका ph7 से कम है और क्षार का मतलब जिनका ph7 से अधिक है। न्यूट्रल का मतलब जिनका PH 7 है। पानी न्यूट्रल है, पेट हमेशा पानी के जैसा रहे तो सबसे अच्छा है।
पानी पीने के सही तरीके
7. पानी घूंट घूंट कर पीने से लार अधिक मात्रा में पेट में जाएगी तो अम्ल को शांत करने में मदद होगी जिससे आपका पेट निकल रहेगा। सभी जानवर पशु, पक्षी घुट घुट कर या चाट चाट कर पानी पीते हैं इसीलिए ये मनुष्य से ज्यादा स्वस्थ है। पानी घूंट घूंट कर पीने से वजन नहीं बढ़ता है अर्थात शरीर की बनावट के हिसाब से संतुलित रखता है।
8. ठंडा पानी कभी मत पियें। शरीर में तापमान के बराबर का ही पानी पियें।मतलब गुनगुना पानी पिए अर्थात 27° से 37° के बीच का ही पानी पिए (मौसम के हिसाब से)। मिट्टी के बर्तन का पानी 27° तापमान का होता है। ऐसा मिट्टी की तासीर के कारण होता है
9. ठंडा पानी पीने से पेट को उसे सामान्य तापमान पर लाने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा की जरूरत होती है और अतिरिक्त ऊर्जा के लिए अतिरिक्त खून की जरूरत होती है। जिससे की अलग-अलग हिस्सों से इसकी पूर्ति होती है। इससे उन हिस्सों में खून की कमी होने लगती है और ऐसा बार-बार करने से कई बीमारियां शरीर में जन्म लेने लगती है इस क्रिया में गुरुत्वाकर्षण बल के कारण सबसे ज्यादा दिमाग से रक्त आता है, उसके बाद हृदय का घाट आना आता है। रक्त की कमी के कारण अंग काम करना बंद कर देते हैं। इसीलिए इसके कारण ब्रेन हेमरेज, लकवा, हृदयाघात जैसी बीमारियां हो सकती है।
10. ठंडा पानी पीने से सबसे पहली बीमारी कोष्ठबध्दता की होती है। क्योंकि ठंडा पानी पीते रहने से बड़ी आत संकुचित हो जाती है। फ्रिज का पानी, बर्फ डाला हुआ पानी और आइसक्रीम जैसी वस्तुएं ना खाएं।
11. सुबह गुनगुना पानी पिएं अथवा तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पियें (सिर्फ सुबह)। प्लास्टिक या अल्युमिनियम के बर्तन का पानी कभी मत पिएं, पानी का अपना कोई गुण नहीं होता है इसे जिस में मिलाया जाता है उसी का गुण धारण कर लेता है। पानी हमेशा बैठकर ही पिएं। 18 वर्ष से कम के लोगों के लिए 750 ग्राम, 18 वर्ष से 60 वर्ष के बीच के लोगों के लिए 1:00 से 1:15 लीटर तथा 60 वर्ष से अधिक के लोगों के लिए 750 ग्राम पानी पीना आवश्यक है।
12. शरीर में तांबे की अधिकता की स्थिति में सुबह का पानी ताम्रपत्र का ना पिएं। तांबे के बर्तन का पानी पीते समय नंगे पांव न रहें, अर्थात लकड़ी या प्लास्टिक जैसी ही किसी वस्तु को पैरों में धारण करके ही पिएं तांबे का पानी पीते समय जमीन से शरीर का सीधा संपर्क न हो।
समान रूप से 4 से 5 लीटर पानी जरूर पीना चाहिए।
13. खड़े होकर और जल्दी-जल्दी पानी पीने से दो गंभीर रोग होते हैं, जिसमें पहला है हर्निया (आंत का उतरना) और दूसरा है अपेंडिसाइटिस (अपेंडिक्स) 60 वर्ष से अधिक उम्र में एक बीमारी हाइड्रोसील की भी हो सकती है। पानी हर व्यक्ति को अपने वजन में 10 से भाग देकर दो घटाकर दिन भर में पानी पीने की मात्रा की गन्ना कर सकते हैं। समान रूप से 4 से 5 लीटर पानी जरूर पीना चाहिए।
14. एक साथ गटागट पिया हुआ पानी किडनी पर सबसे अधिक दबाव देता है। क्योंकि शरीर में पानी को छानने का काम की किडनियां दोनों करती है। इस प्रकार पानी पीने से शरीर को कोई लाभ नहीं होता है। ऐसा अमेरिका के 2 वैज्ञानिकों के शोध से पता चला है। जापान की सरकार ने अपनी चिकित्सा पद्धति में इसको शामिल किया है।
15. नाभि पूरे शरीर का केंद्र है और बैठने की स्थिति में पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल नाभि पर लगता है और खड़े हो जाने की स्थिति में गुरुत्व केंद्र नाभि से खिसक जाता है। गुरुत्व बल का नाभि पर प्रभाव होने से इसका प्रभाव जठराग्नि पर पड़ता है जिसके कारण सुखासन में बैठने की स्थिति में कुछ भी खाने पीने से जल्दी और पूरी तरह हजम हो जाता है। क्योंकि ऐसी स्थिति में एक अतिरिक्त बल काम करता है। किसी मजबूरी की स्थिति में पानी हमेशा झुककर पिएं ।पानी पीते समय या कुछ भी खाते समय गुरुत्व बल हमेशा नाभि के नजदीक रहे। प्याऊ की व्यवस्था हजारों सालों से चल रही है।
16. शरीर को अच्छी तरह काम करने के लिए शरीर को कम से कम 27 डिग्री और अधिक से अधिक 47 डिग्री का तापमान चाहिए। लगातार ठंडा पानी पीते रहने से जठराग्नि मंद हो जाती है बड़ी आंख और छोटी आंख सिकुड़ जाती है।
17. बारिश का पानी सबसे अच्छा होता है। यह पानी 1 साल तक आराम से पी सकते हैं बिना कोई केमिकल मिलाये। बीच-बीच में फिटकरी या चुनने के प्रयोग से इसकी शुद्धता को बनाए रख सकते हैं। इसके बाद बहती हुई नदियों का पानी जो बर्फीले पहाड़ों से होकर गुजरता है अर्थात पहाड़ों से होकर आता है, सबसे अच्छा होता है। इसके बाद तलाव का पानी अच्छा है जहां बारिश का पानी इकट्ठा होता है। नल का पानी जो बारिश के पानी से छनकर आता है। MCD के पानी को बिना उबाले ना पिए। आरो के पानी की गुणवत्ता कम हो जाती है क्योंकि इसके शुद्धीकरण के प्रयोग किए जाते हैं जाने वाले केमिकल पानी की पोषकता को समाप्त कर देते हैं। आरो का पानी साफ होता है लेकिन शुद्ध नहीं होता है। आरो के पानी में क्लोरीन क्लोरीन जैसे केमिकल पानी को साफ करने के लिए इस्तेमाल होते हैं जो कि हमारे शरीर की दृष्टि से यह सारे केमिकल बहुत ही हानिकारक है। इसलिए पानी को उबालकर पिए सबसे अच्छा रहेगा। रीसायकल किया हुआ पानी बिना उबाले कभी ना पिए। ऐसे पानी को उबालने के बाद इसकी गुणवत्ता और अधिक बढ़ जाती है।
तांबे का बर्तन में रखा हुआ पानी पीना सबसे अच्छा है।
18. होली के बाद और बारिश के पहले दिन तक मिट्टी के बर्तन का पानी पिएं बारिश के पहले दिन से बारिश के अंतिम दिन तक तांबे का बर्तन में रखा हुआ पानी पीना सबसे अच्छा है।बारिश समाप्त होने के दिन से होली के दिन तक सोने के बर्तन में रखा हुआ पानी अच्छा होता है।
19. मानसिक रोगों से पीड़ित लोगों के लिए सोने का पानी बहुत अच्छा होता है। अल्प विकसित मस्तिष्क की बीमारी में सोने के बर्तन में रखा हुआ पानी अच्छा होता है। कफ की सभी बीमारियों के लिए सबसे अच्छा है सोने के बर्तन में रखा हुआ पानी। सर्दी, खासी, जुकाम, माइग्रेन (लेफ्ट राइड) ये सारी कफ की बीमारियां हैं।
20. छाती से लेकर सिर तक सारे गहरे सोने के होते हैं ताकि कफ नियंत्रित रहे। छाती से नीचे सभी गहने चांदी के होते हैं। ग्रहों की स्थिति से निपटने के लिए सोने की अंगुठियां पहनी जाती है अन्यथा अंगूठियां चांदी की होनी चाहिए।
21. नींद न आना और अवसाद की बीमारियों के लिए शीशे के बर्तन में रखा हुआ पानी सबसे अच्छा होता है।
पानी पीने के सही तरीके
22. एक बार पानी गर्म करके सुबह से शाम तक किया जा सकता है। ज्वआइन्डइस ( पीलिया) की बीमारियों के लिए सबसे अच्छा पानी बारिश का होता है।
1. शरीर के वेगों को कभी नहीं रोकना चाहिए जैसे नींद एक वेग है, इसे रोकना नहीं चाहिए क्योंकि वेगों को रोकने से भी बीमारियां उत्पन्न होती हैं।
2. हंंसी सहज रुप से आ रही है तो कभी मत रोकें। हंसी शरीर में बनने वाले कुछ अलग-अलग रसों (अलग-अलग ग्रंथियों से उत्पन्न होती है) के कारण पैदा होती है। मस्तिष्क में एक पिनियल ग्लैंड है जो बहुत मदद करता है हंसी आने के लिए, पिनियल ग्लैंड में कुछ रस बनते हैं जिनसे हंसी का सीधा संबंध होता है पहले ये रस पैदा होगा बाद में हंसी आएगी। ये रस भावना (शरीर की) के कारण सेकंड्स में उत्पन्न होता है। जबरदस्ती कभी नहीं हंसना चाहिए। क्योंकि बिना-भाव के और बिना रस की हंसी से शरीर को कोई लाभ नहीं होता है। ये पूरी तरह से यांत्रिक हंसी होती है। बिना रस और बिना भाव की हंसी में कभी भी पेट की नस पे नस चढ़ सकती है जिससे पेट दर्द या अन्य कई तकलीफें आ सकती है। ऐसी स्थिति में पेट का ऑपरेशन भी करना पड़ सकता है।
3. शारीरिक वेगों को नहीं रोकना चाहिए, दूसरा एक वेग है, ना तो जबरदस्ती छींकने की कोशिश करें और न ही आती हुई छींक को रोकने की कोशिश करें। जबरदस्ती छीकने से 14 से 15 रोग शरीर में आ सकते हैं और आती हुई छींक को रोकने पर 23 से 24 रोग हो सकते हैं।
आयुर्वेदिक और धार्मिक सलाह
4. प्याज तीसरा वेग हैं जिसे कभी नहीं रुकना चाहिए। पानी कितनी भी प्यास में सिप-सिप करके पीना चाहिए। बिना प्याज के पानी सुबह-सुबह ही पी सकते हैं अन्यथा नहीं। सुबह मतलब ब्रह्म मुहूर्त यानी सूर्योदय से डेढ़ घंटे पहले का समय। प्यास रोकने से कुल 58 रोग शरीर में आते हैं। कुर्सी पर बैठकर पानी पीना भी सही नियम नहीं है।
5. भूख के वेग रोकने से 103 रोग शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। जिसमें पहला रोग एसिडिटी का है और आखरी रोग आंत का कैंसर है।
6. जम्हाई आने का वेग कभी ना रोकें शरीर के रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने के कारण जम्हाई आती है। क्योंकि इसी के माध्यम से रक्त में ऑक्सीजन की इस कमी की पूर्ति करने के लिए अतिरिक्त ऑक्सीजन की व्यवस्था होती है। इसीलिए जम्हाई को कभी न रोके। जहां अपनों से उच्च लोग बैठे हों उस अवस्था में थोड़ी दूर जाकर या मुंह घुमाकर जम्हाई लें ।प्रकृति का नियम है जितनी ऑक्सीजन लेंगे उसी समय में उतनी ही कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकलेगी।
7. शारीरिक वेगों को नहीं रोकना चाहिए मूत्र वेग कभी रोकने की कोशिश न करें। इसको रोकने से रक्त के सारे विकार शरीर धारण कर लेगा यह वेग रोकने से शरीर के हर हिस्से में दबाव बढ़ जाता है। रक्त पर दबाए पड़ेगा तो सभी ग्रंथियों पर दबाव पड़ेगा। मूत्र का एक-एक कम आना किसी बीमारी के कारण होता है। मूत्र खुलकर आना और बार बार आना बीमारी नहीं है। ऐसी स्थिति में किसी विशेषज्ञ की मदद लें।
8. मल का वेग कभी न रोकें। दिन में दो बार, समय कोई भी हो समान्य स्थिति है और 2 बार से अधिक जाने की अवस्था में कोई समस्या या बीमारी हो सकती है यानी रोज तीन तीन बार जाना थोड़ी असामान्य स्थिति है। लेकिन 3 बार से अधिक जाना मतलब निश्चित रूप से कोई समस्या या बीमारी की स्थिति है। इसके लिए किसी विशेषज्ञ की मदद ले
आयुर्वेदिक और धार्मिक सलाह
9. वीर्य का वेग साधु,संत, महंत, अथवा ब्रह्मचार्य का पालन करने वाले लोगों को ही रोकना चाहिए और अवश्य रोकना चाहिए। इसमें सभी कुंवारे लोग भी शामिल हैं। गृहस्थ जीवन जीने वाले लोगों को वीर्य का वेग कभी नहीं रोकना चाहिए। अर्थात काम वेग गृहस्थ लोगों को कभी नहीं रोकना चाहिए। ऐसा करना बहुत ही खराब माना गया है। ऐसा सिर्फ पति-पत्नी के परिपेक्ष्य में कहा गया है। कुंवारे लोगों के लिए इसका पहला नियम लागू होता है।
10. वीर्य का वेग गृहस्थ लोगों के लिए भी कृत्रिम नहीं होना चाहिए अर्थात जबरदस्ती वीर्य के वेग को पैदा भी नहीं करना चाहिए। गृहस्थ नियमों के साथ ही इस नियम का पालन करना चाहिए। साधु, संत, महात्मा, ब्रह्मचारी इस तरह के लोग असामान्य श्रेणी के मनुष्य हैं। अर्थात ग्रस्त लोग साधारण श्रेणी के लोग हैं।
आजकल के जीवनशैली में हमारे आहार की गुणवत्ता और स्वास्थ्य के साथ गहरा संबंध होता है। यह ब्लॉग आपको उन अनमोल सुझावों के बारे में जागरूक करेगा जो आटे, गेहूं, और स्वास्थ्य के बीच के संबंध को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकते हैं।
आटा और स्वास्थ्य एक स्वस्थ जीवन की राह
1. 48 से 50 बीमारियां नहीं होती हैं:
आहार के माध्यम से सही जीवनशैली का पालन करके हम अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित रख सकते हैं।
2. गर्भाशय मुलायम होता है:
गर्भाशय के स्वस्थ रहने के लिए पोषण में ध्यान देना महत्वपूर्ण है।
3. सिजेरियन से पैदा हुआ बच्चों के रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर होती है:
स्वस्थ्य आहार, व्यायाम, और ध्यान से इस क्षमता को बढ़ावा दिलाया जा सकता है।
4. सिजेरियन से पैदा नहीं होने वाले बच्चों का दिमाग विकसित होता है:
बिना डिमाग के नुकसान के, बच्चों की कल्पनाशीलता को बढ़ावा देने के लिए उन्हें सही शिक्षा और प्रेरणा देना महत्वपूर्ण है।
5. आटे का सही इस्तेमाल:
रोटी को ताजगी से खाने के लिए घर की चक्की का आटा बनाने के फायदे और उपयोग के तरीके।
6. वजन कम करने में मदद:
रोज 15 मिनट तक चक्की चलाने के फायदे और इससे वजन कम करने में मदद कैसे मिलती है।
7. गर्भाशय समस्याएँ और उनका समाधान:
45 वर्ष के बाद की गर्भाशय समस्याओं के लक्षण और उन्हें कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।
8. मेन्सीज साइकल और मेनोपोस:
मेन्सीज साइकल के बदलाव के साथ मेनोपोस के दर्दनाक लक्षणों का सामना कैसे करें।
9. वायु की स्थिति और आहार:
आपके पर्यावरण के आधार पर आहार को कैसे अनुकूलित करें और स्वस्थ जीवन के लिए तैयार रहें।
10. आटा का महत्व:
घर की चक्की का आटा क्यों है सबसे अच्छा और स्वस्थ विकल्प।
समापन:
आटा और स्वास्थ्य के बारे में यह जानकारी आपको स्वस्थ जीवनशैली अपनाने में मदद करेगी। स्वस्थ आहार और उपयोगी तरीकों का पालन करके, आप अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित और मजबूत बना सकते हैं। इसे अपने परिवार और दोस्तों के साथ साझा करें ताकि वे भी इससे लाभान्वित हो सकें।
ध्यान दें: यह ब्लॉग आम सलाह और जानकारी के लिए है और किसी भी गंभीर चिकित्सा समस्या का निदान नहीं कर सकता है। आपके स्वास्थ्य परेशानी होने पर, कृपया किसी पेशेवर चिकित्सक से सलाह लें।आटा और स्वास्थ्य: एक स्वस्थ जीवन की राह
आटा और स्वास्थ्य एक स्वस्थ जीवन की राह
परिचय:
आजकल के जीवनशैली में हमारे आहार की गुणवत्ता और स्वास्थ्य के साथ गहरा संबंध होता है। यह ब्लॉग आपको उन अनमोल सुझावों के बारे में जागरूक करेगा जो आटे, गेहूं, और स्वास्थ्य के बीच के संबंध को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकते हैं।
1. 48 से 50 बीमारियां नहीं होती हैं:
आहार के माध्यम से सही जीवनशैली का पालन करके हम अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित रख सकते हैं।
2. गर्भाशय मुलायम होता है:
गर्भाशय के स्वस्थ रहने के लिए पोषण में ध्यान देना महत्वपूर्ण है।
3. सिजेरियन से पैदा हुआ बच्चों के रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर होती है:
स्वस्थ्य आहार, व्यायाम, और ध्यान से इस क्षमता को बढ़ावा दिलाया जा सकता है।
4. सिजेरियन से पैदा नहीं होने वाले बच्चों का दिमाग विकसित होता है:
बिना डिमाग के नुकसान के, बच्चों की कल्पनाशीलता को बढ़ावा देने के लिए उन्हें सही शिक्षा और प्रेरणा देना महत्वपूर्ण है।
5. आटे का सही इस्तेमाल:
रोटी को ताजगी से खाने के लिए घर की चक्की का आटा बनाने के फायदे और उपयोग के तरीके।
6. वजन कम करने में मदद:
रोज 15 मिनट तक चक्की चलाने के फायदे और इससे वजन कम करने में मदद कैसे मिलती है।
7. गर्भाशय समस्याएँ और उनका समाधान:
45 वर्ष के बाद की गर्भाशय समस्याओं के लक्षण और उन्हें कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।
8. मेन्सीज साइकल और मेनोपोस:
मेन्सीज साइकल के बदलाव के साथ मेनोपोस के दर्दनाक लक्षणों का सामना कैसे करें।
9. वायु की स्थिति और आहार:
आपके पर्यावरण के आधार पर आहार को कैसे अनुकूलित करें और स्वस्थ जीवन के लिए तैयार रहें।
10. आटा का महत्व:
घर की चक्की का आटा क्यों है सबसे अच्छा और स्वस्थ विकल्प।
समापन:
आटा और स्वास्थ्य के बारे में यह जानकारी आपको स्वस्थ जीवनशैली अपनाने में मदद करेगी। स्वस्थ आहार और उपयोगी तरीकों का पालन करके, आप अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित और मजबूत बना सकते हैं। इसे अपने परिवार और दोस्तों के साथ साझा करें ताकि वे भी इससे लाभान्वित हो सकें।
ध्यान दें: यह ब्लॉग आम सलाह और जानकारी के लिए है और किसी भी गंभीर चिकित्सा समस्या का निदान नहीं कर सकता है। आपके स्वास्थ्य परेशानी होने पर, कृपया किसी पेशेवर चिकित्सक से सलाह लें।
आटा का महत्व:
परिचय:
आजकल के जीवनशैली में हमारे आहार की गुणवत्ता और स्वास्थ्य के साथ गहरा संबंध होता है। यह ब्लॉग आपको उन अनमोल सुझावों के बारे में जागरूक करेगा जो आटे, गेहूं, और स्वास्थ्य के बीच के संबंध को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकते हैं।
1. 48 से 50 बीमारियां नहीं होती हैं:
आहार के माध्यम से सही जीवनशैली का पालन करके हम अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित रख सकते हैं।
2. गर्भाशय मुलायम होता है:
गर्भाशय के स्वस्थ रहने के लिए पोषण में ध्यान देना महत्वपूर्ण है।
3. सिजेरियन से पैदा हुआ बच्चों के रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर होती है:
स्वस्थ्य आहार, व्यायाम, और ध्यान से इस क्षमता को बढ़ावा दिलाया जा सकता है।
4. सिजेरियन से पैदा नहीं होने वाले बच्चों का दिमाग विकसित होता है:
बिना डिमाग के नुकसान के, बच्चों की कल्पनाशीलता को बढ़ावा देने के लिए उन्हें सही शिक्षा और प्रेरणा देना महत्वपूर्ण है।
5. आटे का सही इस्तेमाल:
रोटी को ताजगी से खाने के लिए घर की चक्की का आटा बनाने के फायदे और उपयोग के तरीके।
6. वजन कम करने में मदद:
रोज 15 मिनट तक चक्की चलाने के फायदे और इससे वजन कम करने में मदद कैसे मिलती है।
7. गर्भाशय समस्याएँ और उनका समाधान:
45 वर्ष के बाद की गर्भाशय समस्याओं के लक्षण और उन्हें कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।
8. मेन्सीज साइकल और मेनोपोस:
मेन्सीज साइकल के बदलाव के साथ मेनोपोस के दर्दनाक लक्षणों का सामना कैसे करें।
9. वायु की स्थिति और आहार:
आपके पर्यावरण के आधार पर आहार को कैसे अनुकूलित करें और स्वस्थ जीवन के लिए तैयार रहें।
10. आटा का महत्व:
घर की चक्की का आटा क्यों है सबसे अच्छा और स्वस्थ विकल्प।
समापन:
आटा और स्वास्थ्य के बारे में यह जानकारी आपको स्वस्थ जीवनशैली अपनाने में मदद करेगी। स्वस्थ आहार और उपयोगी तरीकों का पालन करके, आप अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित और मजबूत बना सकते हैं। इसे अपने परिवार और दोस्तों के साथ साझा करें ताकि वे भी इससे लाभान्वित हो सकें।
ध्यान दें: यह ब्लॉग आम सलाह और जानकारी के लिए है और किसी भी गंभीर चिकित्सा समस्या का निदान नहीं कर सकता है। आपके स्वास्थ्य परेशानी होने पर, कृपया किसी पेशेवर चिकित्सक से सलाह लें।
आटे का सही इस्तेमाल
परिचय:
आजकल के जीवनशैली में हमारे आहार की गुणवत्ता और स्वास्थ्य के साथ गहरा संबंध होता है। यह ब्लॉग आपको उन अनमोल सुझावों के बारे में जागरूक करेगा जो आटे, गेहूं, और स्वास्थ्य के बीच के संबंध को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकते हैं।
1. 48 से 50 बीमारियां नहीं होती हैं:
आहार के माध्यम से सही जीवनशैली का पालन करके हम अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित रख सकते हैं।
2. गर्भाशय मुलायम होता है:
गर्भाशय के स्वस्थ रहने के लिए पोषण में ध्यान देना महत्वपूर्ण है।
3. सिजेरियन से पैदा हुआ बच्चों के रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर होती है:
स्वस्थ्य आहार, व्यायाम, और ध्यान से इस क्षमता को बढ़ावा दिलाया जा सकता है।
4. सिजेरियन से पैदा नहीं होने वाले बच्चों का दिमाग विकसित होता है:
बिना डिमाग के नुकसान के, बच्चों की कल्पनाशीलता को बढ़ावा देने के लिए उन्हें सही शिक्षा और प्रेरणा देना महत्वपूर्ण है।
5. आटे का सही इस्तेमाल:
रोटी को ताजगी से खाने के लिए घर की चक्की का आटा बनाने के फायदे और उपयोग के तरीके।
6. वजन कम करने में मदद:
रोज 15 मिनट तक चक्की चलाने के फायदे और इससे वजन कम करने में मदद कैसे मिलती है।
7. गर्भाशय समस्याएँ और उनका समाधान:
45 वर्ष के बाद की गर्भाशय समस्याओं के लक्षण और उन्हें कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।
8. मेन्सीज साइकल और मेनोपोस:
मेन्सीज साइकल के बदलाव के साथ मेनोपोस के दर्दनाक लक्षणों का सामना कैसे करें।
9. वायु की स्थिति और आहार:
आपके पर्यावरण के आधार पर आहार को कैसे अनुकूलित करें और स्वस्थ जीवन के लिए तैयार रहें।
10. आटा का महत्व:
घर की चक्की का आटा क्यों है सबसे अच्छा और स्वस्थ विकल्प।
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ध्यान दें: यह ब्लॉग आम सलाह और जानकारी के लिए है और किसी भी गंभीर चिकित्सा समस्या का निदान नहीं कर सकता है। आपके स्वास्थ्य परेशानी होने पर, कृपया किसी पेशेवर चिकित्सक से सलाह लें।
परिचय:
आजकल के जीवनशैली में हमारे आहार की गुणवत्ता और स्वास्थ्य के साथ गहरा संबंध होता है। यह ब्लॉग आपको उन अनमोल सुझावों के बारे में जागरूक करेगा जो आटे, गेहूं, और स्वास्थ्य के बीच के संबंध को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकते हैं।
1. 48 से 50 बीमारियां नहीं होती हैं:
आहार के माध्यम से सही जीवनशैली का पालन करके हम अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित रख सकते हैं।
2. गर्भाशय मुलायम होता है:
गर्भाशय के स्वस्थ रहने के लिए पोषण में ध्यान देना महत्वपूर्ण है।
3. सिजेरियन से पैदा हुआ बच्चों के रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर होती है:
स्वस्थ्य आहार, व्यायाम, और ध्यान से इस क्षमता को बढ़ावा दिलाया जा सकता है।
4. सिजेरियन से पैदा नहीं होने वाले बच्चों का दिमाग विकसित होता है:
बिना डिमाग के नुकसान के, बच्चों की कल्पनाशीलता को बढ़ावा देने के लिए उन्हें सही शिक्षा और प्रेरणा देना महत्वपूर्ण है।
5. आटे का सही इस्तेमाल:
रोटी को ताजगी से खाने के लिए घर की चक्की का आटा बनाने के फायदे और उपयोग के तरीके।
6. वजन कम करने में मदद:
रोज 15 मिनट तक चक्की चलाने के फायदे और इससे वजन कम करने में मदद कैसे मिलती है।
7. गर्भाशय समस्याएँ और उनका समाधान:
45 वर्ष के बाद की गर्भाशय समस्याओं के लक्षण और उन्हें कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।
8. मेन्सीज साइकल और मेनोपोस:
मेन्सीज साइकल के बदलाव के साथ मेनोपोस के दर्दनाक लक्षणों का सामना कैसे करें।
9. वायु की स्थिति और आहार:
आपके पर्यावरण के आधार पर आहार को कैसे अनुकूलित करें और स्वस्थ जीवन के लिए तैयार रहें।
10. आटा का महत्व:
घर की चक्की का आटा क्यों है सबसे अच्छा और स्वस्थ विकल्प।
समापन:
आटा और स्वास्थ्य के बारे में यह जानकारी आपको स्वस्थ जीवनशैली अपनाने में मदद करेगी। स्वस्थ आहार और उपयोगी तरीकों का पालन करके, आप अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित और मजबूत बना सकते हैं। इसे अपने परिवार और दोस्तों के साथ साझा करें ताकि वे भी इससे लाभान्वित हो सकें।
ध्यान दें: यह ब्लॉग आम सलाह और जानकारी के लिए है और किसी भी गंभीर चिकित्सा समस्या का निदान नहीं कर सकता है। आपके स्वास्थ्य परेशानी होने पर, कृपया किसी पेशेवर चिकित्सक से सलाह लें।
परिचय:
आजकल के जीवनशैली में हमारे आहार की गुणवत्ता और स्वास्थ्य के साथ गहरा संबंध होता है। यह ब्लॉग आपको उन अनमोल सुझावों के बारे में जागरूक करेगा जो आटे, गेहूं, और स्वास्थ्य के बीच के संबंध को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकते हैं।
1. 48 से 50 बीमारियां नहीं होती हैं:
आहार के माध्यम से सही जीवनशैली का पालन करके हम अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित रख सकते हैं।
2. गर्भाशय मुलायम होता है:
गर्भाशय के स्वस्थ रहने के लिए पोषण में ध्यान देना महत्वपूर्ण है।
3. सिजेरियन से पैदा हुआ बच्चों के रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर होती है:
स्वस्थ्य आहार, व्यायाम, और ध्यान से इस क्षमता को बढ़ावा दिलाया जा सकता है।
4. सिजेरियन से पैदा नहीं होने वाले बच्चों का दिमाग विकसित होता है:
बिना डिमाग के नुकसान के, बच्चों की कल्पनाशीलता को बढ़ावा देने के लिए उन्हें सही शिक्षा और प्रेरणा देना महत्वपूर्ण है।
5. आटे का सही इस्तेमाल:
रोटी को ताजगी से खाने के लिए घर की चक्की का आटा बनाने के फायदे और उपयोग के तरीके।
6. वजन कम करने में मदद:
रोज 15 मिनट तक चक्की चलाने के फायदे और इससे वजन कम करने में मदद कैसे मिलती है।
7. गर्भाशय समस्याएँ और उनका समाधान:
45 वर्ष के बाद की गर्भाशय समस्याओं के लक्षण और उन्हें कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।
8. मेन्सीज साइकल और मेनोपोस:
मेन्सीज साइकल के बदलाव के साथ मेनोपोस के दर्दनाक लक्षणों का सामना कैसे करें।
9. वायु की स्थिति और आहार:
आपके पर्यावरण के आधार पर आहार को कैसे अनुकूलित करें और स्वस्थ जीवन के लिए तैयार रहें।
10. आटा का महत्व:
घर की चक्की का आटा क्यों है सबसे अच्छा और स्वस्थ विकल्प।
समापन:
आटा और स्वास्थ्य के बारे में यह जानकारी आपको स्वस्थ जीवनशैली अपनाने में मदद करेगी। स्वस्थ आहार और उपयोगी तरीकों का पालन करके, आप अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित और मजबूत बना सकते हैं। इसे अपने परिवार और दोस्तों के साथ साझा करें ताकि वे भी इससे लाभान्वित हो सकें।
ध्यान दें: यह ब्लॉग आम सलाह और जानकारी के लिए है और किसी भी गंभीर चिकित्सा समस्या का निदान नहीं कर सकता है। आपके स्वास्थ्य परेशानी होने पर, कृपया किसी पेशेवर चिकित्सक से सलाह लें।
परिचय:
आजकल के जीवनशैली में हमारे आहार की गुणवत्ता और स्वास्थ्य के साथ गहरा संबंध होता है। यह ब्लॉग आपको उन अनमोल सुझावों के बारे में जागरूक करेगा जो आटे, गेहूं, और स्वास्थ्य के बीच के संबंध को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकते हैं।
1. 48 से 50 बीमारियां नहीं होती हैं:
आहार के माध्यम से सही जीवनशैली का पालन करके हम अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित रख सकते हैं।
2. गर्भाशय मुलायम होता है:
गर्भाशय के स्वस्थ रहने के लिए पोषण में ध्यान देना महत्वपूर्ण है।
3. सिजेरियन से पैदा हुआ बच्चों के रोगों से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर होती है:
स्वस्थ्य आहार, व्यायाम, और ध्यान से इस क्षमता को बढ़ावा दिलाया जा सकता है।
4. सिजेरियन से पैदा नहीं होने वाले बच्चों का दिमाग विकसित होता है:
बिना डिमाग के नुकसान के, बच्चों की कल्पनाशीलता को बढ़ावा देने के लिए उन्हें सही शिक्षा और प्रेरणा देना महत्वपूर्ण है।
5. आटे का सही इस्तेमाल:
रोटी को ताजगी से खाने के लिए घर की चक्की का आटा बनाने के फायदे और उपयोग के तरीके।
6. वजन कम करने में मदद:
रोज 15 मिनट तक चक्की चलाने के फायदे और इससे वजन कम करने में मदद कैसे मिलती है।
7. गर्भाशय समस्याएँ और उनका समाधान:
45 वर्ष के बाद की गर्भाशय समस्याओं के लक्षण और उन्हें कैसे नियंत्रित किया जा सकता है।
8. मेन्सीज साइकल और मेनोपोस:
मेन्सीज साइकल के बदलाव के साथ मेनोपोस के दर्दनाक लक्षणों का सामना कैसे करें।
9. वायु की स्थिति और आहार:
आपके पर्यावरण के आधार पर आहार को कैसे अनुकूलित करें और स्वस्थ जीवन के लिए तैयार रहें।
10. आटा का महत्व:
घर की चक्की का आटा क्यों है सबसे अच्छा और स्वस्थ विकल्प।
समापन:
आटा और स्वास्थ्य के बारे में यह जानकारी आपको स्वस्थ जीवनशैली अपनाने में मदद करेगी। स्वस्थ आहार और उपयोगी तरीकों का पालन करके, आप अपने स्वास्थ्य को सुरक्षित और मजबूत बना सकते हैं। इसे अपने परिवार और दोस्तों के साथ साझा करें ताकि वे भी इससे लाभान्वित हो सकें।
ध्यान दें: यह ब्लॉग आम सलाह और जानकारी के लिए है और किसी भी गंभीर चिकित्सा समस्या का निदान नहीं कर सकता है। आपके स्वास्थ्य परेशानी होने पर, कृपया किसी पेशेवर चिकित्सक से सलाह लें।
1. खेत की मिट्टी माइक्रो न्यूट्रिएंट्स का खजाना है। जो भोजन खेत में पकने में जितना समय लेता है उसके हिसाब से घर में पकने में भी समय लेता है। यह प्रकृति का सिद्धांत है। मिट्टी पवित्र होती है। हमारा शरीर मिट्टी से बना है इसीलिए हमारे शरीर को जिन सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है वह मिट्टी से पाए जाते हैं और हमारे शरीर को जलने के बाद मात्र 20 ग्राम मिट्टी राख में बदल जाती है। इस रात में वही माइक्रो न्यूट्रिएंट्स होते हैं जो मिट्टी में होते हैं।
मिट्टी के बर्तन में पका हुआ भोजन खाएं
2. मिट्टी के बर्तन में पका हुआ भोजन खाएं। मिट्टी के बर्तन में पका हुआ भोजन जल्दी खराब नहीं होता है और इसको पकने में एक भी माइक्रो न्यूट्रिएंट्स कम नहीं होते है। मिट्टी, कांंसे पीतल या स्टील के खुले बर्तन में खाना पकाएं। मिट्टी के बर्तन में 100%, कांसे के बर्तन में 96% और पीतल के बर्तन में 93% माइक्रो न्यूट्रिएंट्स बचते हैं।
3. मिट्टी के बर्तन बायोडिग्रेडेबल है क्योंकि इन नष्ट होने के बाद पुनः मिट्टी में मिल जाते हैं। डायबिटीज के मरीजों को मिट्टी के बर्तन में पका हुआ भोजन ही करना चाहिए। TVS ग्रुप जो हजारों करोड़ों के एंपायर का मालिक है उनके घर में मिट्टी के बर्तन इस्तेमाल होते हैं। रिलायंस ग्रुप की मालकिन कोकिला बहन रोटी मिट्टी के तवे पर बनाती है।
4. शरीर को बनाने में शुक्र पोषक तत्व की भूमिका में कैल्शियम, फास्फोरस,आयरन इसी तरह के 18 तत्व शरीर में होते हैं। जिन लोगों के पीठ पर कुंवर निकल आता है, उनको शरीर में फास्फोरस की बहुत कमी होती है। शरीर में खून की कमी आयरन की कमी के कारण होती है। दमा और अस्थमा की स्थिति में शरीर में सल्फर की कमी होती है।
5. सबसे अच्छे बर्तन मिट्टी के होते हैं कांच के बर्तन या वस्तुएं मिट्टी से बनते हैं शरीर में पाए जाने वाले सभी 18 सूक्ष्म पोषक तत्व मिट्टी में भी होते हैं इसलिए मिट्टी शरीर के आवश्यक सभी सूक्ष्म पोषक तत्वों की मां है। फास्फोरस सल्फर, जिंक मैग्निशियम, मैंगनीज, आयरन जैसे तत्व मिट्टी से ही मिलते हैं। मिट्टी ने लाखों करोड़ों साल से सूरज की धूप में जो तपस्या की है उसी का यह परिणाम है कि सभी पोषक तत्व मिट्टी में विद्यमान हैं जो कि किसी भी जीव को चाहिए जो इस मिट्टी से किसी ना किसी रूप से जुड़ा है। कैल्शियम और आयरन की कमी के कारण ज्यादातर बच्चे ऑपरेशन के द्वारा पैदा होते हैं सीजर करवाने वाली हर स्त्री को दर्द से छुटकारा कभी नहीं मिलता है।
6. शुद्ध लोहे का बर्तन ज्यादा अच्छा होता है स्टेनलेस स्टील के बर्तनों की तुलना में। लोहे की कढ़ाई या अन्य बर्तन साफ करने के पहले नींबू निचोड़ दें और उनके छिलकों से रिश्ते, उनके बाद बर्तन साफ करें। काली मिट्टी का तवा मक्की की रोटी के लिए सबसे अच्छा होता है। लाल मिट्टी का तवा गेहूं की रोटी के लिए सबसे अच्छा होता है तथा पीली मिट्टी का तवा बाजरे की रोटी के लिए सबसे अच्छा होता है।
7. भारत के ज्यादातर मंदिरों में प्रसाद मिट्टी के बर्तन में ही बनता है। भारत में गुजरात, राजस्थान और भी कई राज्यों में करोड़ों लोग आज भी मिट्टी के बर्तन में खाना पकाते हैं। मिट्टी उष्मा की कुचालक है। खेत की मिट्टी माइक्रो न्यूट्रिएंट्स का खजाना है। जो भोजन खेत में पकने में जितना समय लेता है उसके हिसाब से घर में पकने में भी समय लेता है। यह प्रकृति का सिद्धांत है। मिट्टी पवित्र होती है। हमारा शरीर मिट्टी से बना है इसीलिए हमारे शरीर को जिन सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है वह मिट्टी से पाए जाते हैं और हमारे शरीर को जलने के बाद मात्र 20 ग्राम मिट्टी राख में बदल जाती है। इस रात में वही माइक्रो न्यूट्रिएंट्स होते हैं जो मिट्टी में होते हैं।
1. आयोडीन नमक कभी ना खाएं नमक हमेशा सेंधा या काला खाएं। हाई बीपी और लो बीपी दोनों में नमक औषधि है। जिनका ब्लड प्रेशर ऊंचा है उन्हें समुद्र स्नान करना चाहिए या स्नान करते समय पानी में समुद्री नमक या सेंधा नमक मिला दें। कम से कम 15 से 20 दिन तक साबुन न लगाएं। जिनका ब्लड प्रेशर लो है उन्हें सेंधा नमक पानी में मिलाकर पीना चाहिए।
2. आयोडीन नमक नपुंसकता लाता है भारत को छोड़कर दुनिया के सभी देशों में आयोडीन नमक बंद है। आयोडीन नमक से कंपल्शन (अनिवार्यता) हट गया है इसीलिए आप सेंधा नमक या काला नमक खा सकते हैं। आयोडीन नमक खाने से डेनमार्क के बच्चे पैदा नहीं होते हैं वहां ज्यादा बच्चे फायदा करने पर सरकार द्वारा इनाम मिलता है।
भारत में जनसंख्या कम करने की जरूरत नहीं है, जरूरत है संसाधनों का सही बटवारा करने की
3. भारत में जनसंख्या कम करने की जरूरत नहीं है, जरूरत है संसाधनों का सही बटवारा करने की।
4. सेंधा नमक सबसे ज्यादा बिष को कम करता है काला नमक भी बिष को कम करता है भोजन पकाते समय सेंधा नमक ही प्रयोग करें सेंधा नमक डाला हुआ खाना खाने के बाद दूध का सेवन किया जा सकता है ब्रह्मचारी लोगों के लिए सेंधा नमक और काला नमक सबसे अच्छा होता है हल्दी भी सामान से थोड़ी सी ज्यादा मात्रा में डालना चाहिए जिससे जहर थोड़ा और कम हो जाएगा। सबसे ज्यादा सोडियम सेंधा नमक और काले नमक से मिलता है। सोडियम की थोड़ी सी कमी लकवे का कारण हो सकती है सोडियम की कमी से आवाज भी जा सकती है।
5. समुंद्री या आयोडीन नमक में 3 से 4 सूक्ष्म पोषक तत्व है, जो शरीर को काम आते हैं। सेंधा नमक में 94 पोषक तत्व है जो शरीर के काम आते हैं। समुंदर का पानी मनुष्य के अनुकूल नहीं है जिसके कारण समुद्री नमक भी शरीर के अनुकूल नहीं है। अतः शरीर की साड़ी आसमान जटिलताएं बढ़ती है। समुंदर के सभी नमक रक्तचाप बढ़ाने वाले हैं समुद्री नमक का चलन मात्र 60 साल पहले से ही शुरू हुआ है।
6. दैनिक आहार में शरीर को आवश्यक आयोडीन की मांग की पूर्ति हो जाती है अर्थात अतिरिक्त आयोडीन की आवश्यकता शरीर को नहीं पड़ती है। क्योंकि आयोडीन की मांग शरीर में अधिक होने की स्थिति से नपुंसकता बढ़ती है।
7. नमक को फ्री फ्लो बनाने के लिए नमक की नमी को निकाला जाता है और नमक का गुण नहीं है कि वह नमी को धारण करें। नमी को निकालने के लिए एलुमिनियम सिलीकेट केमिकल डालते हैं जो की बहुत ही खतरनाक है। दूसरा केमिकल पोटैशियम आयोडेट जो अप्राकृतिक है। यह दोनों केमिकल हमारे शरीर में बहुत सी जटिलताओं को जन्म देते हैं। ठंडे देशों में आयोडीन नमक की जरूरत होती है।
सेंधा नमक सबसे ज्यादा बिष को कम करता है काला नमक भी बिष को कम करता है भोजन पकाते समय सेंधा नमक ही प्रयोग करें सेंधा नमक डाला हुआ खाना खाने के बाद दूध का सेवन किया जा सकता है ब्रह्मचारी लोगों के लिए सेंधा नमक और काला नमक सबसे अच्छा होता है हल्दी भी सामान से थोड़ी सी ज्यादा मात्रा में डालना चाहिए जिससे जहर थोड़ा और कम हो जाएगा। सबसे ज्यादा सोडियम सेंधा नमक और काले नमक से मिलता है। सोडियम की थोड़ी सी कमी लकवे का कारण हो सकती है सोडियम की कमी से आवाज भी जा सकती है।
समुंद्री या आयोडीन नमक में 3 से 4 सूक्ष्म पोषक तत्व है, जो शरीर को काम आते हैं। सेंधा नमक में 94 पोषक तत्व है जो शरीर के काम आते हैं। समुंदर का पानी मनुष्य के अनुकूल नहीं है जिसके कारण समुद्री नमक भी शरीर के अनुकूल नहीं है। अतः शरीर की साड़ी आसमान जटिलताएं बढ़ती है। समुंदर के सभी नमक रक्तचाप बढ़ाने वाले हैं समुद्री नमक का चलन मात्र 60 साल पहले से ही शुरू हुआ है।
1. भोजन को पकाते समय सूरज का प्रकाश एवं पवन का स्पर्श ना मिले तो वह भोजन कभी मत करना। वह भोजन धीमा जहर है। भोजन को पकाते समय सूरज का प्रकाश और पवन का असर जरूर होना चाहिए। भोजन को पकाते समय अधिक से अधिक प्राणवायु (ऑक्सीजन) भोजन द्वारा शोषित हो जिससे वह भोजन आपके शरीर के लिए बहुत ही लाभदायक सिद्ध होगा।
प्रेशर कुकर का भोजन ना करें
2. प्रेशर कुकर का भोजन ना करें। ज्यादातर प्रेशर कुकर एल्युमिनियम के बने होते हैं और एल्युमिनियम खाना पकाने, रखने और खाने की दृष्टि से सबसे खराब धातु है। एल्युमिनियम के बर्तन का खाना बार-बार खाने से डायबिटीज ,अर्थराइटिस ,ब्रोंकाइटिस ,टीवी, अस्थमा आदि इसी तरह की 48 बीमारियां हो सकती है। ऐसा वैज्ञानिक लोग कहते हैं
3. वैज्ञानिक के अनुसार प्रेशर कुकर खाने को पकाने के लिए उस पर अतिरिक्त दबाव डालता है प्रेशर कुकर में भोजन वक्ता नहीं है बल्कि दबाव से टूट जाता है प्रेशर कुकर में पकाए हुए भोजन में सिर्फ 3% माइक्रो न्यूट्रिएंट्स बसते हैं। मॉलिक्यूल्स टूट जाते हैं, पकते नहीं है ।
4. एल्युमिनियम के बर्तन का खाना खाने से शरीर की प्रतिकारक क्षमता कम होती है। 100 साल 125 साल पहले से एल्युमिनियम भारत में आया है। एलुमिनियम भारी तत्व है जो शरीर में इकट्ठा होता रहता है,एस्क्रिटा सिस्टम जो जहर को बाहर निकालने का तंत्र है वो एल्युमिनियम को कभी भी बाहर नहीं निकाल पाता और बाद में दमा, अस्थमा, ट्यूबरक्लोसिस जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बनता है। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में एलुमिनियम वर्जित है। कैंसर तक की बीमारियां प्रेशर कुकर से होती है। किडनी फेल होने का कारण एल्युमिनियम के बर्तन भी है।
5. एल्युमिनियम के बर्तन टीवी होने का सबसे बड़ा कारण है। भारत में सरकारी आंकड़े बताते हैं कि यहां सबसे ज्यादा मृत्यु टीवी के बीमारी के कारण होती है। और सबसे ज्यादा मरीज भारत में टीवी की बीमारी के ही है।
6. शरीर की ऐसी अवस्था है जिसमें हल्की धातुएं शरीर से बाहर निकल जाती हैं और भारी धातुएं शरीर के बाहर नहीं निकल पाती हैं अर्थात शरीर में ही जमा होती रहती है। अतः एल्युमिनियम भारी धातु है जो कि शरीर में जमा होती रहती है। शरीर से बाहर नहीं निकलती है। इसी प्रकार के केमिकल है। आर्सेनिक, पारा (लेड) आदि।
7. रेफ्रीजरेटर की कोई भी चीज ना खाए ना पिए क्योंकि रेफ्रिजरेटर में न पवन का स्पर्श होता है और न ही सूरज का प्रकाश लगता है। रेफ्रिजरेटर ऐसी 12 गैसों का इस्तेमाल प्राकृतिक के नियमों के विरुद्ध तापमान कम करने में करता है। जिसको वैज्ञानिक की भाषा में CFC कहते हैं। क्लोरो – फ्लोरो कार्बन, जिसमें क्लोरीन भी है, फ्लोरीन भी और कार्बन डाइऑक्साइड भी है। रसायन शास्त्र के शब्दकोश में क्लोरीन मतलब जहर, फ्लोरीन मतलब अत्यंत जहर ,और कार्बन डाइऑक्साइड का मतलब अत्याधिक से भी अत्यंत जहाज। यही कार्य AC भी करता है।
8. रेफ्रिजरेटर ये तीनों गैसें लगातार छोड़ता है और ऐसी ही कुल 12 गैंसे छोड़ता है इसलिए इस में रखी हुई हर एक वस्तु इन्हीं गैसों के प्रभाव से रहती है। यह गैंसे इतनी तीव्र होती हैं कि स्टील के बर्तनों में से भी निकल जाती है। फ्रीज में रखी हुई कोई भी वस्तु यदि आप खा रहे हैं तो आप धीमा जहर खा रहे हैं। रेफ्रिजरेटर का आविष्कार ठंडे देशों में प्रयोग के लिए हुआ था।
माइक्रोवेव ओवन का कभी भी कुछ न खाना।
9. माइक्रोवेव ओवन का कभी भी कुछ न खाना। माइक्रोवेव ओवन में जब आप कोई चीज रखते हैं, गरम करने के लिए उस वस्तु का एक ही हिस्सा गर्म होता है। कोई भी वस्तु सभी तरह से बराबर गर्म होनी चाहिए। माइक्रोवेव ओवन भी ठंडे देशों के लिए है। ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए सभी को फ्रीज का इस्तेमाल कम या बंद करना पड़ेगा।
मुंबा देवी माता: मुंबई की प्रमुख देवी का आदर्श श्रद्धा स्थल
नमस्कार दोस्तों, आज हम बात करेंगे मुंबा देवी मंदिर के बारे में। दोस्तो जिनके नाम पर पड़ा है आर्थिक राजधानी मुंबई का नाम। कहा जाता है कि यहां जाने भर से ही भक्तों की मनोकामना पूरी हो जाती है। दक्षिण मुंबई के भुनेश्वर इलाके में स्थित मुंबा देवी धाम बेहद प्रसिद्ध है। इस मंदिर के बारे में यह मानना है कि सच्चे मन से यहां जाने वाले भक्तों की हर मनोकामना पूरी हुई है। आपको बता दें कि मुंबई का नाम मुंबा देवी के नाम पर रखा गया है। बता दें कि मुंबा देवी की मंदिर 1737 में मेनजीस नामक जगह पर बना था जहां आज विक्टोरिया टनल बिल्डिंग है । बाद में अंग्रेजों की हुकूमत ने इस मंदिर को मरीन लाइंस पूर्व क्षेत्र के बाजार के बीचो बीच स्थापित कर दिया। उस वक्त मंदिर के तीनों और बड़े तालाब हुआ करते थे। जिन्हें बांटकर अब मैदान बना दिया गय।
मुंबा देवी माता
इस मंदिर का इतिहास लगभग 400 वर्ष पुराना है। कहते हैं मुंबा देवी मंदिर की स्थापना मछुआरों ने की थी। उनका मानना था कि मुंबा देवी समुंदर में उनकी रक्षा करती है। पुणे मुंबई में मुंबा देवी की बहुत मान्यता है। लोग पूरे देश भर से मां की दर्शन करने के लिए और मन्नत मांगने यहां आते हैं। बता दे की मुंबा देवी मंदिर बनाने के लिए पांडू सेठ ने अपनी जमीन दान में दी थी। इसी वजह से वर्षों तक इस मंदिर की देखरेख उन्हीं के परिवार ने की। हालांकि बाद में कुछ वर्षों में मुंबई हाई कोर्ट ने कहा कि मुंबा देवी मंदिर का देखरेख मुंबा देवी न्यास करेगा। इसीलिए तब से लेकर आज तक न्यास ही इस मंदिर की देखरेख करता है। वैसे तो मुंबा देवी मंदिर में रोज भीड़ एकत्रित होते हैं लेकिन मंगलवार के दिन लोगों का सैलाब उमर पड़ता है। भक्तों की मन में आता है कि सच्चे दिल से मांगी गई कोई भी मुराद यहां आकर पूरी होती है और मंगलवार के दिन मुंबा देवी के दर्शन कर लिए जाए तो उनकी जीवन की सारी समस्या दूर हो जाती है। यहां मन्नत मांगते वक्त भक्तगण लकड़ी पर सिक्कों को किलो से ठोकते हैं । उनका मानना है कि यह सिक्के निशानी के तौर पर आजीवन मंदिर के प्रांगण में स्थापित रहेगा।
मुंबा देवी के मंदिर में हर रोज करीबन 6 बार आरती की जाती है। इस मंदिर में लगभग 16 पुजारी कार्यरत है। माता के लिए भोग मंदिर के ऊपरी मंजिल पर बनाया जाता है। भोग में दो प्रकार की सब्जी, चावल, मिठाई नियमित रूप से बनाया जाता है। मंदिर के प्रांगण में रात्रि के समय निवास करना मना है। शाम के समय आरती समाप्त होने के बाद पुजारी मंदिर की साफ सफाई करके मंदिर के दरवाजे बंद करके अपने घर चले जाते हैं। और रोज सुबह 4:00 बजे मंदिर में वापस आते हैं। मंदिर के ऊपर एक झंडा लगाया गया है,जिसे हर महीने बदल दिया जाता है। मुंबई से मुंबई और मुंबई से आगे का सफर तय कर मुंबई की आर्थिक राजधानी के लिए काफी दिलचस्प रहा, शुरुआत में मछुआरों की बस्ती बस्ती तो उन्होंने यहां एक देवी की स्थापना की और उनका नाम मुंबा देवी रखा, और जिनके नाम पर इस जगह का नाम पड़ा मुंबई। जिसका अर्थ होता है मुंबा प्लस आई मतलब मुंबई की मां। मराठी में आई का मतलब होता है। लेकिन बाद में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान इस शहर का नाम बदलकर मुंबई कर दिया गया।
वक्त बदला भारत आजाद हुआ लेकिन अब भी लोग मुंबई को बम्बई के नाम से ही जानते हैं। फिर सन् 1995 में इसका नाम बम्बई से बदलकर मुंबई कर दिया गया। दोस्तों आप भी इस प्रसिद्ध मंदिर के दर्शन जरूर कीजिएगा। आप की भी सारी मनोकामना पूरी होगी और जीवन की समस्या दूर होगी। मुझे आशा है कि यह जानकारी आपको अच्छी लगी हो। धन्यवाद।
1. सूर्य उदय से ढाई घंटे तक जठराग्नि के काम करने का सबसे अच्छा समय है अर्थात सुबह 7:00 बजे से 9:30 बजे तक। हृदय के काम करने का सबसे अच्छा समय है ब्रह्म मुहूर्त से ढाई घंटे पहले अर्थात 2:00- 2:15 बजे से लेकर सुबह 4:00- 4:30 बजे तक हृदय सबसे ज्यादा सक्रिय होता है और सबसे ज्यादा ह्रदय घात इसी समय में आते हैं।
2. दोपहर का भोजन सुबह के भोजन का आधा होना चाहिए। शाम का भोजन दोपहर के भोजन का आधा होना चाहिए अर्थात यदि आप सुबह 6 रोटी खाते हैं तो दोपहर को चार रोटी ले लीजिए और शाम को दो रोटी ले लीजिए।
3. भोजन में मन की संतुष्टि पेट की संतुष्टि से ज्यादा बड़ी है। मन की संतुष्टि नहीं होने वाले भोजन करते रहने से 10 से 12 साल बाद मानसिक रोग पैदा होने लगते हैं अवसाद जैसी बीमारियां शरीर में प्रवेश करने लगती है। ऐसी स्थिति में कुल 27 तरह की बीमारियां हो सकती है।
4. मनुष्य को छोड़कर जीव जगत का हर प्राणी इस सूत्र का पालन करता है। -दोपहर के बाद जठराग्नि की तीव्रता कम होने लगती है लेकिन सूर्यास्त के समय जठराग्नि की तीव्रता बढ़ जाती है जैसे बुझते हुए दीपक की रोशनी उसके बुझते समय बढ़ जाती है। अतः रात्रि भोजन कभी न करें। सूरज डूबने से 40 मिनट पहले भोजन कर लेना चाहिए।
5. सूरज डूबने के बाद सिर्फ दूध पी सकते हैं जिसमें देसी गाय का दूध सबसे अच्छा है।
6. खाना हमेशा जमीन पर बैठकर ही खाए यानी सुखासन में खाना खायें। सुखासन में बैठकर खाते समय जांघों के नीचे की तरफ रख बहाव रुक जाता है। जिसके कारण सारा रक्त पेट में ही रहता है जो कि खाना पचाने में काफी मदद करता है। इस स्थिति में जठराग्नि सबसे ज्यादा तीव्र होती है। गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव से नाभि चार्ज होती रहती है। कुर्सी पर बैठने से उसकी तीव्रता घट जाती है और खड़े हो जाने से उसकी तीव्रता बिल्कुल कम हो जाती है। शरीर के अंदर कई चक्र होते हैं जिनका असर जठराग्नि पर पड़ता है। खाना खाते समय खाना जमीन से थोड़ी ऊंचाई पर रखा होना चाहिए सुखासन के अतिरिक्त गाय का दूध निकालने की जो मुद्रा होती है उसमें भी खाना खा सकते हैं। ये मुद्रा शारीरिक श्रम अधिक करने वाले के लिए है अर्थात किसान अथवा मजदूरों के लिए है। सुखासन में बैठकर खाना खाने से पेट बाहर नहीं निकलता है।लेकिन डाइनिंग टेबल पर खाना खाने से पेट बाहर निकलता है डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर सुखासन में बैठकर खाना खायें हर एक जॉइंट्स में ल्यूब्रिकेंटस के लिए स्लोवियल फ्लू होता है। शरीर जितना अधिक पृथ्वी के नजदीक होगा अर्थात गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में होगा उतना ही अधिक शरीर को लाभ होगा।
खाना हमेशा जमीन पर बैठकर ही खाए यानी सुखासन में खाना खायें
7. सुबह या दोपहर के खाने के तुरंत बाद कम से कम 20 मिनट की विश्रांति ले। विश्रांति वामकुक्षि अवस्था में लेकर लें अथवा भगवान विष्णु की शेषनाग पर लेटने की मुद्रा में लेटें। हमारे शरीर में तीन नाड़ियां है। सूर्य नाड़ी। चंद्र नाड़ी और मध्य नाड़ी। सूरज नाड़ी ही हमारे भोजन को पचाने में मदद करती हैं। (वाम कुक्षि) बाई तरफ करवट लेकर लेटते ही सूर्य नाड़ी शुरू हो जाती है। स्वस्थ व्यक्ति की अवस्था में खाना खाने की सूर्य नाड़ी सक्रिय हो जाती है। विश्रांति के दौरान नींद आने पर नींद को रोके नहीं। दोपहर का विश्राम 18 वर्ष से 60 वर्ष तक के लोगों के लिए 40 मिनट से 1 घंटे तक का होना चाहिए, 1 साल से 18 वर्ष और 60 वर्ष से अधिक के लोगों के लिए 1 घंटे से डेढ़ घंटे विश्राम करना चाहिए।
8. खाना पकाते समय शरीर के सभी अंगों से खून पेट की तरफ आता है जिसके कारण शरीर में आलस्य बढ़ता है। इसीलिए मस्तिष्क आराम करना चाहता है। इसके कारण नींद आती है।
9. दोपहर के खाने के बाद नींद लेने के महत्व पर पूरे विश्व में शोध हो रहे हैं जिसके परिणाम के तहत बहुत सारी कंपनियां अपने कर्मचारियों को दोपहर के भोजन के बाद नींद लेने का मौका देती है। जिस कर्मचारियों को नींद लेने की छूट दी गई है, उसके काम करने की क्षमता 3 गुना बढ़ गयी है। खाना खाने के बाद शरीर का रक्त दबाव बढ़ जाता है। इसलिए भी सुबह या दोपहर के खाने के बाद 20 से 40 मिनट का आराम करना ही चाहिए।
10. मनुष्य को छोड़कर जीव जगत का हर प्राणी इस सूत्र का पालन करता है।