
गुड़ के गुण
1.गुड़ के गुण ठंड के दिनों में पित्त कम होगा, वह थोड़ा बढ़ा हुआ रहेगा और कफ सबसे अधिक बढ़ा हुआ होगा। कफ का असर हमारी जठराग्नि पर होता है जिससे जठराग्नि थोड़ा कम (मंद) होती है। इसीलिए सर्दी के दिनों में तिल, गुड़ मूंगफली खाना चाहिए और भी सबसे ज्यादा खाना चाहिए।
2. गुड़ के गुण कफ को शांत रखने के लिए गुड़ सबसे अच्छा होता है। कफ को संतुलित रखने के लिए शहद भी अच्छी होती है। इसीलिए जो शहद खा सकते हैं उन्हें शहद खाना चाहिए और जो गुड़ खा सकते हैं उन्हें गुड़ खाना चाहिए।
3. कफ जब भी बिगड़ता है तो शरीर में फास्फोरस की कमी आ जाती है। शरीर में फास्फोरस के पूरक के रूप में बहुत थोड़ी मात्रा में आर्सेनिक होना चाहिए जिससे फास्फोरस को ताकत मिलती है। लेकिन आर्सेनिक शरीर के लिए एक प्रकार का जहर है इसीलिए इसकी मात्रा शरीर में बढ़नी नहीं चाहिए। गुड़ में भरपूर मात्रा में फास्फोरस होता है और बहुत थोड़ी मात्रा में आर्सेनिक होता है। इसलिए कफ को नियंत्रित करने के लिए गुड़ अवश्य खाएं। गन्ने के रस से ज्यादा फास्फोरस गुड़ में होता है।
4. गुड़ 1 दिन के बच्चे को भी खिलाया जा सकता है। बशर्ते यह जैविक होना चाहिए। गुड़ से भी अच्छी स्थिति का फास्फोरस तरल गुड़ /राव/ काक्वी में होता है।

सर्दियों में स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण खाद्य
5. सफेद गुड कभी न खाएं। गुड़ हमेशा ताम्बाई रंग का खाए या काले रंग का खाएं । गुड़ के अतिरिक्त जो भी मिठाईयां है, वह स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छी नहीं होती हैं जैसे चीनी। क्योंकि चीनी बनते ही फास्फोरस समाप्त हो जाता है। चीनी से शरीर में सबसे अंत में अम्ल बनता है।
6. गुड़ से शरीर में सबसे अंत में क्षार बनता है। चूंकि शरीर में अम्ल बनता है जो चीनी खाने से वात के कई सारे रोग जन्म लेना शुरू कर देंगे। गुड से बनने वाला क्षार पेट के अम्ल को संतुलित करता रहता है जिसके कारण रोगों की संभावना नहीं बनती है।
7. गुड़ के गुण चीनी को पचाने के लिए पेट को वैसी ही ताकत लगानी पड़ती है जैसी ठंडे पानी को शरीर में तापमान पर लाने में लगानी पड़ती है। चीनी सबसे देर में पचती है। गुड़ पेट की सभी चीजों को पचाता है और चीनी को पेट को बचाना पड़ता है।
8. ब्रह्मचारी लोगों के लिए चीनी बहुत खराब है जैविक गुड़ (केमिकल रहित) सबसे उत्तम होता है।
9. दही में गुड़ मिलाकर ही खाना चाहिए लेकिन दूध में गुड़ मिलाकर कभी नहीं लेना चाहिए। दूध पीने के पहले या बाद में गुड़ खा सकते हैं। दही में गुड़ मिलाने से दही के दोष समाप्त हो जाते हैं।
10. मूंगफली भी क्षारीय है अर्थात इसे भी गुड़ के साथ अवश्य खाना चाहिए। इसे नवंबर, दिसंबर, जनवरी, फरवरी में जरूर खाना चाहिए। इससे कफ संतुलित रहेगा।
11. कफ का सबसे खराब रोग मोटापा है। मोटापा कम करने के उद्देश्य से भी आप गुड़,मूंगफली,तिल आदि खा सकते हैं। मोटापा कम हो जाएगा।
12. तेल का वही गुण होता है जो गुड़ का होता है। इसीलिए तिल और गुड़ अवश्य खाना चाहिए।
13. गुड़ या गुड़ की बनी हुई कोई भी वस्तु खाने में से जहर को कम करने का काम करती हैं।
1. ठंड के दिनों में पित्त कम होगा, वह थोड़ा बढ़ा हुआ रहेगा और कफ सबसे अधिक बढ़ा हुआ होगा। कफ का असर हमारी जठराग्नि पर होता है जिससे जठराग्नि थोड़ा कम (मंद) होती है। इसीलिए सर्दी के दिनों में तिल, गुड़ मूंगफली खाना चाहिए और भी सबसे ज्यादा खाना चाहिए।
2. कफ को शांत रखने के लिए गुड़ सबसे अच्छा होता है। कफ को संतुलित रखने के लिए शहद भी अच्छी होती है। इसीलिए जो शहद खा सकते हैं उन्हें शहद खाना चाहिए और जो गुड़ खा सकते हैं उन्हें गुड़ खाना चाहिए।
3. कफ जब भी बिगड़ता है तो शरीर में फास्फोरस की कमी आ जाती है। शरीर में फास्फोरस के पूरक के रूप में बहुत थोड़ी मात्रा में आर्सेनिक होना चाहिए जिससे फास्फोरस को ताकत मिलती है। लेकिन आर्सेनिक शरीर के लिए एक प्रकार का जहर है इसीलिए इसकी मात्रा शरीर में बढ़नी नहीं चाहिए। गुड़ में भरपूर मात्रा में फास्फोरस होता है और बहुत थोड़ी मात्रा में आर्सेनिक होता है। इसलिए कफ को नियंत्रित करने के लिए गुड़ अवश्य खाएं। गन्ने के रस से ज्यादा फास्फोरस गुड़ में होता है।
4. गुड़ 1 दिन के बच्चे को भी खिलाया जा सकता है। बशर्ते यह जैविक होना चाहिए। गुड़ से भी अच्छी स्थिति का फास्फोरस तरल गुड़ /राव/ काक्वी में होता है।
5. सफेद गुड कभी न खाएं। गुड़ हमेशा ताम्बाई रंग का खाए या काले रंग का खाएं । गुड़ के अतिरिक्त जो भी मिठाईयां है, वह स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छी नहीं होती हैं जैसे चीनी। क्योंकि चीनी बनते ही फास्फोरस समाप्त हो जाता है। चीनी से शरीर में सबसे अंत में अम्ल बनता है।
6. गुड़ से शरीर में सबसे अंत में क्षार बनता है। चूंकि शरीर में अम्ल बनता है जो चीनी खाने से वात के कई सारे रोग जन्म लेना शुरू कर देंगे। गुड से बनने वाला क्षार पेट के अम्ल को संतुलित करता रहता है जिसके कारण रोगों की संभावना नहीं बनती है।
7. चीनी को पचाने के लिए पेट को वैसी ही ताकत लगानी पड़ती है जैसी ठंडे पानी को शरीर में तापमान पर लाने में लगानी पड़ती है। चीनी सबसे देर में पचती है। गुड़ पेट की सभी चीजों को पचाता है और चीनी को पेट को बचाना पड़ता है।
8. ब्रह्मचारी लोगों के लिए चीनी बहुत खराब है जैविक गुड़ (केमिकल रहित) सबसे उत्तम होता है।
9. दही में गुड़ मिलाकर ही खाना चाहिए लेकिन दूध में गुड़ मिलाकर कभी नहीं लेना चाहिए। दूध पीने के पहले या बाद में गुड़ खा सकते हैं। दही में गुड़ मिलाने से दही के दोष समाप्त हो जाते हैं।
10. मूंगफली भी क्षारीय है अर्थात इसे भी गुड़ के साथ अवश्य खाना चाहिए। इसे नवंबर, दिसंबर, जनवरी, फरवरी में जरूर खाना चाहिए। इससे कफ संतुलित रहेगा।
11. कफ का सबसे खराब रोग मोटापा है। मोटापा कम करने के उद्देश्य से भी आप गुड़,मूंगफली,तिल आदि खा सकते हैं। मोटापा कम हो जाएगा।
12. तेल का वही गुण होता है जो गुड़ का होता है। इसीलिए तिल और गुड़ अवश्य खाना चाहिए।
13. गुड़ या गुड़ की बनी हुई कोई भी वस्तु खाने में से जहर को कम करने का काम करती हैं।

कफ का असर हमारी जठराग्नि पर होता है
2. कफ को शांत रखने के लिए गुड़ सबसे अच्छा होता है। कफ को संतुलित रखने के लिए शहद भी अच्छी होती है। इसीलिए जो शहद खा सकते हैं उन्हें शहद खाना चाहिए और जो गुड़ खा सकते हैं उन्हें गुड़ खाना चाहिए।
3. कफ जब भी बिगड़ता है तो शरीर में फास्फोरस की कमी आ जाती है। शरीर में फास्फोरस के पूरक के रूप में बहुत थोड़ी मात्रा में आर्सेनिक होना चाहिए जिससे फास्फोरस को ताकत मिलती है। लेकिन आर्सेनिक शरीर के लिए एक प्रकार का जहर है इसीलिए इसकी मात्रा शरीर में बढ़नी नहीं चाहिए। गुड़ में भरपूर मात्रा में फास्फोरस होता है और बहुत थोड़ी मात्रा में आर्सेनिक होता है। इसलिए कफ को नियंत्रित करने के लिए गुड़ अवश्य खाएं। गन्ने के रस से ज्यादा फास्फोरस गुड़ में होता है।
4. गुड़ 1 दिन के बच्चे को भी खिलाया जा सकता है। बशर्ते यह जैविक होना चाहिए। गुड़ से भी अच्छी स्थिति का फास्फोरस तरल गुड़ /राव/ काक्वी में होता है।
5. सफेद गुड कभी न खाएं। गुड़ हमेशा ताम्बाई रंग का खाए या काले रंग का खाएं । गुड़ के अतिरिक्त जो भी मिठाईयां है, वह स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छी नहीं होती हैं जैसे चीनी। क्योंकि चीनी बनते ही फास्फोरस समाप्त हो जाता है। चीनी से शरीर में सबसे अंत में अम्ल बनता है।
6. गुड़ से शरीर में सबसे अंत में क्षार बनता है। चूंकि शरीर में अम्ल बनता है जो चीनी खाने से वात के कई सारे रोग जन्म लेना शुरू कर देंगे। गुड से बनने वाला क्षार पेट के अम्ल को संतुलित करता रहता है जिसके कारण रोगों की संभावना नहीं बनती है।
7. चीनी को पचाने के लिए पेट को वैसी ही ताकत लगानी पड़ती है जैसी ठंडे पानी को शरीर में तापमान पर लाने में लगानी पड़ती है। चीनी सबसे देर में पचती है। गुड़ पेट की सभी चीजों को पचाता है और चीनी को पेट को बचाना पड़ता है।
8. ब्रह्मचारी लोगों के लिए चीनी बहुत खराब है जैविक गुड़ (केमिकल रहित) सबसे उत्तम होता है।
9. दही में गुड़ मिलाकर ही खाना चाहिए लेकिन दूध में गुड़ मिलाकर कभी नहीं लेना चाहिए। दूध पीने के पहले या बाद में गुड़ खा सकते हैं। दही में गुड़ मिलाने से दही के दोष समाप्त हो जाते हैं।
10. मूंगफली भी क्षारीय है अर्थात इसे भी गुड़ के साथ अवश्य खाना चाहिए। इसे नवंबर, दिसंबर, जनवरी, फरवरी में जरूर खाना चाहिए। इससे कफ संतुलित रहेगा।
11. कफ का सबसे खराब रोग मोटापा है। मोटापा कम करने के उद्देश्य से भी आप गुड़,मूंगफली,तिल आदि खा सकते हैं। मोटापा कम हो जाएगा।
12. तेल का वही गुण होता है जो गुड़ का होता है। इसीलिए तिल और गुड़ अवश्य खाना चाहिए।
13. गुड़ या गुड़ की बनी हुई कोई भी वस्तु खाने में से जहर को कम करने का काम करती हैं।